وَمَآ اُمِرُوْٓا اِلَّا لِيَعْبُدُوا اللّٰهَ مُخْلِصِيْنَ لَهُ الدِّيْنَ ەۙ حُنَفَاۤءَ وَيُقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَيُؤْتُوا الزَّكٰوةَ وَذٰلِكَ دِيْنُ الْقَيِّمَةِۗ ( البينة: ٥ )
And not
وَمَآ
और नहीं
they were commanded
أُمِرُوٓا۟
वो हुक्म दिए गए थे
except
إِلَّا
मगर
to worship
لِيَعْبُدُوا۟
ये कि वो इबादत करें
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह की
(being) sincere
مُخْلِصِينَ
ख़ालिस करने वाले
to Him
لَهُ
उसके लिए
(in) the religion
ٱلدِّينَ
दीन को
upright
حُنَفَآءَ
यक्सू हो कर
and to establish
وَيُقِيمُوا۟
और वो क़ायम करें
the prayer
ٱلصَّلَوٰةَ
नमाज़
and to give
وَيُؤْتُوا۟
और वो अदा करे
the Zakah
ٱلزَّكَوٰةَۚ
ज़कात
And that
وَذَٰلِكَ
और ये है
(is the) religion
دِينُ
दीन
the correct
ٱلْقَيِّمَةِ
दुरुस्त
Wama omiroo illa liya'budoo Allaha mukhliseena lahu alddeena hunafaa wayuqeemoo alssalata wayutoo alzzakata wathalika deenu alqayyimati (al-Bayyinah 98:5)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और उन्हें आदेश भी बस यही दिया गया था कि वे अल्लाह की बन्दगी करे निष्ठा एवं विनयशीलता को उसके लिए विशिष्ट करके, बिलकुल एकाग्र होकर, और नमाज़ की पाबन्दी करें और ज़कात दे। और यही है सत्यवादी समुदाय का धर्म
English Sahih:
And they were not commanded except to worship Allah, [being] sincere to Him in religion, inclining to truth, and to establish prayer and to give Zakah. And that is the correct religion. ([98] Al-Bayyinah : 5)