فَاِنْ رَّجَعَكَ اللّٰهُ اِلٰى طَاۤىِٕفَةٍ مِّنْهُمْ فَاسْتَأْذَنُوْكَ لِلْخُرُوْجِ فَقُلْ لَّنْ تَخْرُجُوْا مَعِيَ اَبَدًا وَّلَنْ تُقَاتِلُوْا مَعِيَ عَدُوًّاۗ اِنَّكُمْ رَضِيْتُمْ بِالْقُعُوْدِ اَوَّلَ مَرَّةٍۗ فَاقْعُدُوْا مَعَ الْخَالِفِيْنَ ( التوبة: ٨٣ )
Fain raja'aka Allahu ila taifatin minhum faistathanooka lilkhurooji faqul lan takhrujoo ma'iya abadan walan tuqatiloo ma'iya 'aduwwan innakum radeetum bialqu'oodi awwala marratin faoq'udoo ma'a alkhalifeena (at-Tawbah 9:83)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अव यदि अल्लाह तुम्हें उनके किसी गिरोह की ओर रुजू कर दे और भविष्य में वे तुमसे साथ निकलने की अनुमति चाहें तो कह देना, 'तुम मेरे साथ कभी भी नहीं निकल सकते और न मेरे साथ होकर किसी शत्रु से लड़ सकते हो। तुम पहली बार बैठ रहने पर ही राज़ी हुए, तो अब पीछे रहनेवालों के साथ बैठे रहो।'
English Sahih:
If Allah should return you to a faction of them [after the expedition] and then they ask your permission to go out [to battle], say, "You will not go out with me, ever, and you will never fight with me an enemy. Indeed, you were satisfied with sitting [at home] the first time, so sit [now] with those who stay behind." ([9] At-Tawbah : 83)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
तो (ऐ रसूल) अगर ख़ुदा तुम इन मुनाफेक़ीन के किसी गिरोह की तरफ (जिहाद से सहीसालिम) वापस लाए फिर तुमसे (जिहाद के वास्ते) निकलने की इजाज़त माँगें तो तुम साफ़ कह दो कि तुम मेरे साथ (जिहाद के वास्ते) हरगिज़ न निकलने पाओगे और न हरगिज़ दुश्मन से मेरे साथ लड़ने पाओगे जब तुमने पहली मरतबा (घर में) बैठे रहना पसन्द किया तो (अब भी) पीछे रह जाने वालों के साथ (घर में) बैठे रहो