۞ اِنَّمَا الصَّدَقٰتُ لِلْفُقَرَاۤءِ وَالْمَسٰكِيْنِ وَالْعَامِلِيْنَ عَلَيْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوْبُهُمْ وَفِى الرِّقَابِ وَالْغَارِمِيْنَ وَفِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ وَابْنِ السَّبِيْلِۗ فَرِيْضَةً مِّنَ اللّٰهِ ۗوَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ( التوبة: ٦٠ )
Innama alssadaqatu lilfuqarai waalmasakeeni waal'amileena 'alayha waalmuallafati quloobuhum wafee alrriqabi waalgharimeena wafee sabeeli Allahi waibni alssabeeli fareedatan mina Allahi waAllahu 'aleemun hakeemun (at-Tawbah 9:60)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
सदक़े तो बस ग़रीबों, मुहताजों और उन लोगों के लिए है, जो काम पर नियुक्त हों और उनके लिए जिनके दिलों को आकृष्ट करना औऱ परचाना अभीष्ट हो और गर्दनों को छुड़ाने और क़र्ज़दारों और तावान भरनेवालों की सहायता करने में, अल्लाह के मार्ग में, मुसाफ़िरों की सहायता करने में लगाने के लिए है। यह अल्लाह की ओर से ठहराया हुआ हुक्म है। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है
English Sahih:
Zakah expenditures are only for the poor and for the needy and for those employed for it and for bringing hearts together [for IsLam] and for freeing captives [or slaves] and for those in debt and for the cause of Allah and for the [stranded] traveler – an obligation [imposed] by Allah. And Allah is Knowing and Wise. ([9] At-Tawbah : 60)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(तो उनका क्या कहना था) ख़ैरात तो बस ख़ास फकीरों का हक़ है और मोहताजों का और उस (ज़कात वग़ैरह) के कारिन्दों का और जिनकी तालीफ़ क़लब की गई है (उनका) और (जिन की) गर्दनों में (गुलामी का फन्दा पड़ा है उनका) और ग़द्दारों का (जो ख़ुदा से अदा नहीं कर सकते) और खुदा की राह (जिहाद) में और परदेसियों की किफ़ालत में ख़र्च करना चाहिए ये हुकूक़ ख़ुदा की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और ख़ुदा बड़ा वाक़िफ कार हिकमत वाला है