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وَلَوْ تَرٰٓى اِذْ يَتَوَفَّى الَّذِيْنَ كَفَرُوا الْمَلٰۤىِٕكَةُ يَضْرِبُوْنَ وُجُوْهَهُمْ وَاَدْبَارَهُمْۚ وَذُوْقُوْا عَذَابَ الْحَرِيْقِ  ( الأنفال: ٥٠ )

And if
وَلَوْ
और काश
you (could) see
تَرَىٰٓ
आप देखें
when
إِذْ
जब
take away souls
يَتَوَفَّى
फ़ौत करते हैं
(of) those who
ٱلَّذِينَ
उनको जिन्होंने
disbelieve
كَفَرُوا۟ۙ
कुफ़्र किया
the Angels
ٱلْمَلَٰٓئِكَةُ
फ़रिश्ते
striking
يَضْرِبُونَ
वो मारते हैं
their faces
وُجُوهَهُمْ
उनके चेहरों पर
and their backs
وَأَدْبَٰرَهُمْ
और उनकी पीठों पर
"Taste
وَذُوقُوا۟
और (वो कहते हैं) चखो
(the) punishment
عَذَابَ
अज़ाब
(of) the Blazing Fire"
ٱلْحَرِيقِ
आग का

Walaw tara ith yatawaffa allatheena kafaroo almalaikatu yadriboona wujoohahum waadbarahum wathooqoo 'athaba alhareeqi (al-ʾAnfāl 8:50)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

क्या ही अच्छा होता कि तुम देखते जब फ़रिश्ते इनकार करनेवालों के प्राण ग्रस्त करते हैं! वे उनके चहरों और उनकी पीठों पर मारते जाते हैं कि 'लो अब जलने की यातना मज़ा चखो।' (तो उनकी दुर्दशा का अन्दाजा कर सकते)

English Sahih:

And if you could but see when the angels take the souls of those who disbelieved... They are striking their faces and their backs and [saying], "Taste the punishment of the Burning Fire. ([8] Al-Anfal : 50)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और काश (ऐ रसूल) तुम देखते जब फ़रिश्ते काफ़िरों की जान निकाल लेते थे और रूख़ और पुश्त (पीठ) पर कोड़े मारते थे और (कहते थे कि) अज़ाब जहन्नुम के मज़े चखों