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اِذْ اَنْتُمْ بِالْعُدْوَةِ الدُّنْيَا وَهُمْ بِالْعُدْوَةِ الْقُصْوٰى وَالرَّكْبُ اَسْفَلَ مِنْكُمْۗ وَلَوْ تَوَاعَدْتُّمْ لَاخْتَلَفْتُمْ فِى الْمِيْعٰدِۙ وَلٰكِنْ لِّيَقْضِيَ اللّٰهُ اَمْرًا كَانَ مَفْعُوْلًا ەۙ لِّيَهْلِكَ مَنْ هَلَكَ عَنْۢ بَيِّنَةٍ وَّيَحْيٰى مَنْ حَيَّ عَنْۢ بَيِّنَةٍۗ وَاِنَّ اللّٰهَ لَسَمِيْعٌ عَلِيْمٌۙ  ( الأنفال: ٤٢ )

When
إِذْ
जब
you (were)
أَنتُم
तुम
on side of the valley
بِٱلْعُدْوَةِ
किनारे पर थे
the nearer
ٱلدُّنْيَا
क़रीब के
and they
وَهُم
और वो
(were) on the side
بِٱلْعُدْوَةِ
किनारे पर थे
the farther
ٱلْقُصْوَىٰ
दूर के
and the caravan
وَٱلرَّكْبُ
और क़ाफ़िला
(was) lower
أَسْفَلَ
नीचे था
than you
مِنكُمْۚ
तुमसे
And if
وَلَوْ
और अगर
you (had) made an appointment
تَوَاعَدتُّمْ
आपस में वादा करते तुम
certainly you would have failed
لَٱخْتَلَفْتُمْ
अलबत्ता इख़्तिलाफ़ करते तुम
in
فِى
मुक़र्रर वक़्त/जगह के बारे में
the appointment
ٱلْمِيعَٰدِۙ
मुक़र्रर वक़्त/जगह के बारे में
But
وَلَٰكِن
और लेकिन
that might accomplish
لِّيَقْضِىَ
ताकि पूरा कर दे
Allah
ٱللَّهُ
अल्लाह
a matter
أَمْرًا
एक काम को
(that) was
كَانَ
जो था
destined
مَفْعُولًا
होकर रहने वाला
that (might be) destroyed
لِّيَهْلِكَ
ताकि वो हलाक हो
(those) who
مَنْ
जो
(were to be) destroyed
هَلَكَ
हलाक हो
on
عَنۢ
साथ वाज़ेह दलील के
a clear evidence
بَيِّنَةٍ
साथ वाज़ेह दलील के
and (might) live
وَيَحْيَىٰ
और वो ज़िन्दा रहे
(those) who
مَنْ
जो
(were to) live
حَىَّ
ज़िन्दा रहे
on
عَنۢ
साथ वाज़ेह दलील के
a clear evidence
بَيِّنَةٍۗ
साथ वाज़ेह दलील के
And indeed
وَإِنَّ
और बेशक
Allah
ٱللَّهَ
अल्लाह
(is) All-Hearing
لَسَمِيعٌ
अलबत्ता ख़ूब सुनने वाला है
All-Knowing
عَلِيمٌ
ख़ूब जानने वाला है

Ith antum bial'udwati alddunya wahum bial'udwati alquswa waalrrakbu asfala minkum walaw tawa'adtum laikhtalaftum fee almee'adi walakin liyaqdiya Allahu amran kana maf'oolan liyahlika man halaka 'an bayyinatin wayahya man hayya 'an bayyinatin wainna Allaha lasamee'un 'aleemun (al-ʾAnfāl 8:42)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

याद करो जब तुम घाटी के निकटवर्ती छोर पर थे और वे घाटी के दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। यदि तुम परस्पर समय निश्चित किए होते तो अनिवार्यतः तुम निश्चित समय पर न पहुँचते। किन्तु जो कुछ हुआ वह इसलिए कि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे, जिसका पूरा होना निश्चित था, ताकि जिसे विनष्ट होना हो, वह स्पष्ट प्रमाण देखकर ही विनष्ट हो और जिसे जीवित रहना हो वह स्पष्ट़ प्रमाण देखकर जीवित रहे। निस्संदेह अल्लाह भली-भाँति जानता, सुनता है

English Sahih:

[Remember] when you were on the near side of the valley, and they were on the farther side, and the caravan was lower [in position] than you. If you had made an appointment [to meet], you would have missed the appointment. But [it was] so that Allah might accomplish a matter already destined – that those who perished [through disbelief] would perish upon evidence and those who lived [in faith] would live upon evidence; and indeed, Allah is Hearing and Knowing. ([8] Al-Anfal : 42)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(ये वह वक्त था) जब तुम (मैदाने जंग में मदीने के) क़रीब नाके पर थे और वह कुफ्फ़ार बईद (दूर के) के नाके पर और (काफ़िले के) सवार तुम से नशेब में थे और अगर तुम एक दूसरे से (वक्त क़ी तक़रीर का) वायदा कर लेते हो तो और वक्त पर गड़बड़ कर देते मगर (ख़ुदा ने अचानक तुम लोगों को इकट्ठा कर दिया ताकि जो बात यदनी (होनी) थी वह पूरी कर दिखाए ताकि जो शख़्स हलाक (गुमराह) हो वह (हक़ की) हुज्जत तमाम होने के बाद हलाक हो और जो ज़िन्दा रहे वह हिदायत की हुज्जत तमाम होने के बाद ज़िन्दा रहे और ख़ुदा यक़ीनी सुनने वाला ख़बरदार है