اِنْ تَسْتَفْتِحُوْا فَقَدْ جَاۤءَكُمُ الْفَتْحُۚ وَاِنْ تَنْتَهُوْا فَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْۚ وَاِنْ تَعُوْدُوْا نَعُدْۚ وَلَنْ تُغْنِيَ عَنْكُمْ فِئَتُكُمْ شَيْـًٔا وَّلَوْ كَثُرَتْۙ وَاَنَّ اللّٰهَ مَعَ الْمُؤْمِنِيْنَ ࣖ ( الأنفال: ١٩ )
In tastaftihoo faqad jaakumu alfathu wain tantahoo fahuwa khayrun lakum wain ta'oodoo na'ud walan tughniya 'ankum fiatukum shayan walaw kathurat waanna Allaha ma'a almumineena (al-ʾAnfāl 8:19)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यदि तुम फ़ैसला चाहते हो तो फ़ैसला तुम्हारे सामने आ चुका और यदि बाज़ आ जाओ तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है। लेकिन यदि तुमने पलटकर फिर वही हरकत की तो हम भी पलटेंगे और तुम्हारा जत्था, चाहे वह कितना ही अधिक हो, तुम्हारे कुछ काम न आ सकेगा। और यह कि अल्लाह मोमिनों के साथ होता है
English Sahih:
If you [disbelievers] seek the decision [i.e., victory] – the decision [i.e., defeat] has come to you. And if you desist [from hostilities], it is best for you; but if you return [to war], We will return, and never will you be availed by your [large] company at all, even if it should increase; and [that is] because Allah is with the believers. ([8] Al-Anfal : 19)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(काफ़िर) अगर तुम ये चाहते हो (कि जो हक़ पर हो उसकी) फ़तेह हो (मुसलमानों की) फ़तेह भी तुम्हारे सामने आ मौजूद हुई अब क्या गुरूर बाक़ी है और अगर तुम (अब भी मुख़तलिफ़ इस्लाम) से बाज़ रहो तो तुम्हारे वास्ते बेहतर है और अगर कहीं तुम पलट पड़े तो (याद रहे) हम भी पलट पड़ेगें (और तुम्हें तबाह कर छोड़ देगें) और तुम्हारी जमाअत अगरचे बहुत ज्यादा भी हो हरगिज़ कुछ काम न आएगी और ख़ुदा तो यक़ीनी मामिनीन के साथ है