۞ اِنَّ رَبَّكَ يَعْلَمُ اَنَّكَ تَقُوْمُ اَدْنٰى مِنْ ثُلُثَيِ الَّيْلِ وَنِصْفَهٗ وَثُلُثَهٗ وَطَاۤىِٕفَةٌ مِّنَ الَّذِيْنَ مَعَكَۗ وَاللّٰهُ يُقَدِّرُ الَّيْلَ وَالنَّهَارَۗ عَلِمَ اَنْ لَّنْ تُحْصُوْهُ فَتَابَ عَلَيْكُمْ فَاقْرَءُوْا مَا تَيَسَّرَ مِنَ الْقُرْاٰنِۗ عَلِمَ اَنْ سَيَكُوْنُ مِنْكُمْ مَّرْضٰىۙ وَاٰخَرُوْنَ يَضْرِبُوْنَ فِى الْاَرْضِ يَبْتَغُوْنَ مِنْ فَضْلِ اللّٰهِ ۙوَاٰخَرُوْنَ يُقَاتِلُوْنَ فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ ۖفَاقْرَءُوْا مَا تَيَسَّرَ مِنْهُۙ وَاَقِيْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَاَقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًاۗ وَمَا تُقَدِّمُوْا لِاَنْفُسِكُمْ مِّنْ خَيْرٍ تَجِدُوْهُ عِنْدَ اللّٰهِ ۙهُوَ خَيْرًا وَّاَعْظَمَ اَجْرًاۗ وَاسْتَغْفِرُوا اللّٰهَ ۗاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِيْمٌ ࣖ ( المزمل: ٢٠ )
Inna rabbaka ya'lamu annaka taqoomu adna min thuluthayi allayli wanisfahu wathuluthahu wataifatun mina allatheena ma'aka waAllahu yuqaddiru allayla waalnnahara 'alima an lan tuhsoohu fataba 'alaykum faiqraoo ma tayassara mina alqurani 'alima an sayakoonu minkum marda waakharoona yadriboona fee alardi yabtaghoona min fadli Allahi waakharoona yuqatiloona fee sabeeli Allahi faiqraoo ma tayassara minhu waaqeemoo alssalata waatoo alzzakata waaqridoo Allaha qardan hasanan wama tuqaddimoo lianfusikum min khayrin tajidoohu 'inda Allahi huwa khayran waa'thama ajran waistaghfiroo Allaha inna Allaha ghafoorun raheemun (al-Muzzammil 73:20)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
निस्संदेह तुम्हारा रब जानता है कि तुम लगभग दो तिहाई रात, आधी रात और एक तिहाई रात तक (नमाज़ में) खड़े रहते हो, और एक गिरोंह उन लोगों में से भी जो तुम्हारे साथ है, खड़ा होता है। और अल्लाह रात और दिन की घट-बढ़ नियत करता है। उसे मालूम है कि तुम सब उसका निर्वाह न कर सकोगे, अतः उसने तुमपर दया-दृष्टि की। अब जितना क़ुरआन आसानी से हो सके पढ़ लिया करो। उसे मालूम है कि तुममे से कुछ बीमार भी होंगे, और कुछ दूसरे लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह (रोज़ी) को ढूँढ़ते हुए धरती में यात्रा करेंगे, कुछ दूसरे लोग अल्लाह के मार्ग में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जितना आसानी से हो सके पढ़ लिया करो, और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात देते रहो, और अल्लाह को ऋण दो, अच्छा ऋण। तुम जो भलाई भी अपने लिए (आगे) भेजोगे उसे अल्लाह के यहाँ अत्युत्तम और प्रतिदान की दृष्टि से बहुत बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से माफ़ी माँगते रहो। बेशक अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है
English Sahih:
Indeed, your Lord knows, [O Muhammad], that you stand [in prayer] almost two thirds of the night or half of it or a third of it, and [so do] a group of those with you. And Allah determines [the extent of] the night and the day. He has known that you [Muslims] will not be able to do it and has turned to you in forgiveness, so recite what is easy [for you] of the Quran. He has known that there will be among you those who are ill and others traveling throughout the land seeking [something] of the bounty of Allah and others fighting for the cause of Allah. So recite what is easy from it and establish prayer and give Zakah and loan Allah a goodly loan. And whatever good you put forward for yourselves – you will find it with Allah. It is better and greater in reward. And seek forgiveness of Allah. Indeed, Allah is Forgiving and Merciful. ([73] Al-Muzzammil : 20)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार चाहता है कि तुम और तुम्हारे चन्द साथ के लोग (कभी) दो तिहाई रात के करीब और (कभी) आधी रात और (कभी) तिहाई रात (नमाज़ में) खड़े रहते हो और ख़ुदा ही रात और दिन का अच्छी तरह अन्दाज़ा कर सकता है उसे मालूम है कि तुम लोग उस पर पूरी तरह से हावी नहीं हो सकते तो उसने तुम पर मेहरबानी की तो जितना आसानी से हो सके उतना (नमाज़ में) क़ुरान पढ़ लिया करो और वह जानता है कि अनक़रीब तुममें से बाज़ बीमार हो जाएँगे और बाज़ ख़ुदा के फ़ज़ल की तलाश में रूए ज़मीन पर सफर एख्तेयार करेंगे और कुछ लोग ख़ुदा की राह में जेहाद करेंगे तो जितना तुम आसानी से हो सके पढ़ लिया करो और नमाज़ पाबन्दी से पढ़ो और ज़कात देते रहो और ख़ुदा को कर्ज़े हसना दो और जो नेक अमल अपने वास्ते (ख़ुदा के सामने) पेश करोगे उसको ख़ुदा के हाँ बेहतर और सिले में बुर्ज़ुग तर पाओगे और ख़ुदा से मग़फेरत की दुआ माँगो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है