فَتَوَلّٰى عَنْهُمْ وَقَالَ يٰقَوْمِ لَقَدْ اَبْلَغْتُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّيْ وَنَصَحْتُ لَكُمْۚ فَكَيْفَ اٰسٰى عَلٰى قَوْمٍ كٰفِرِيْنَ ࣖ ( الأعراف: ٩٣ )
So he turned away
فَتَوَلَّىٰ
तो उसने मुँह फेर लिया
from them
عَنْهُمْ
उनसे
and said
وَقَالَ
और कहा
"O my people!
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
Verily
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
I (have) conveyed to you
أَبْلَغْتُكُمْ
पहुँचा दिए मैंने तुम्हें
(the) Messages
رِسَٰلَٰتِ
पैग़ामात
(of) my Lord
رَبِّى
अपने रब के
and advised
وَنَصَحْتُ
और ख़ैरख़्वाही की मैंने
[to] you
لَكُمْۖ
तुम्हारी
So how could
فَكَيْفَ
तो क्यों कर
I grieve
ءَاسَىٰ
मैं अफ़सोस करूँ
for
عَلَىٰ
ऐसे लोगों पर
a people
قَوْمٍ
ऐसे लोगों पर
(who are) disbelievers?"
كَٰفِرِينَ
जो काफ़िर हैं
Fatawalla 'anhum waqala ya qawmi laqad ablaghtukum risalati rabbee wanasahtu lakum fakayfa asa 'ala qawmin kafireena (al-ʾAʿrāf 7:93)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तब वह उनके यहाँ से यह कहता हुआ फिरा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैंने अपने रब के सन्देश तुम्हें पहुँचा दिए और मैंने तुम्हारा हित चाहा। अब मैं इनकार करनेवाले लोगो पर कैसे अफ़सोस करूँ!'
English Sahih:
And he [i.e., Shuaib] turned away from them and said, "O my people, I had certainly conveyed to you the messages of my Lord and advised you, so how could I grieve for a disbelieving people?" ([7] Al-A'raf : 93)