وَاِنْ كَانَ طَاۤىِٕفَةٌ مِّنْكُمْ اٰمَنُوْا بِالَّذِيْٓ اُرْسِلْتُ بِهٖ وَطَاۤىِٕفَةٌ لَّمْ يُؤْمِنُوْا فَاصْبِرُوْا حَتّٰى يَحْكُمَ اللّٰهُ بَيْنَنَاۚ وَهُوَ خَيْرُ الْحٰكِمِيْنَ ۔ ( الأعراف: ٨٧ )
Wain kana taifatun minkum amanoo biallathee orsiltu bihi wataifatun lam yuminoo faisbiroo hatta yahkuma Allahu baynana wahuwa khayru alhakimeena (al-ʾAʿrāf 7:87)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
'और यदि तुममें एक गिरोह ऐसा है, जो उसपर ईमान लाया है, जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ और एक गिरोह ऐसा है, जो उसपर ईमान लाया है, जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ और एक गिरोह ईमान नहीं लाया, तो धैर्य से काम लो, यहाँ तक कि अल्लाह हमारे बीच फ़ैसला कर दे। और वह सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है।'
English Sahih:
And if there should be a group among you who has believed in that with which I have been sent and a group that has not believed, then be patient until Allah judges between us. And He is the best of judges." ([7] Al-A'raf : 87)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जिन बातों का मै पैग़ाम लेकर आया हूँ अगर तुममें से एक गिरोह ने उनको मान लिया और एक गिरोह ने नहीं माना तो (कुछ परवाह नहीं) तो तुम सब्र से बैठे (देखते) रहो यहाँ तक कि ख़ुदा (खुद) हमारे दरमियान फैसला कर दे, वह तो सबसे बेहतर फैसला करने वाला है