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فَتَوَلّٰى عَنْهُمْ وَقَالَ يٰقَوْمِ لَقَدْ اَبْلَغْتُكُمْ رِسَالَةَ رَبِّيْ وَنَصَحْتُ لَكُمْ وَلٰكِنْ لَّا تُحِبُّوْنَ النّٰصِحِيْنَ   ( الأعراف: ٧٩ )

So he turned away
فَتَوَلَّىٰ
पस वो मुँह मोड़ कर चला गया
from them
عَنْهُمْ
उनसे
and he said
وَقَالَ
और कहा
"O my people!
يَٰقَوْمِ
ऐ मेरी क़ौम
Verily
لَقَدْ
अलबत्ता तहक़ीक़
I have conveyed to you
أَبْلَغْتُكُمْ
पहुँचा दिया था मैंने तुम्हें
(the) Message
رِسَالَةَ
पैग़ाम
(of) my Lord
رَبِّى
अपने रब का
and [I] advised
وَنَصَحْتُ
और ख़ैरख़्वाही की मैंने
[to] you
لَكُمْ
तुम्हारी
but
وَلَٰكِن
और लेकिन
not
لَّا
नहीं तुम पसंद करते
you like
تُحِبُّونَ
नहीं तुम पसंद करते
the advisers"
ٱلنَّٰصِحِينَ
नसीहत करने वालों को

Fatawalla 'anhum waqala ya qawmi laqad ablaghtukum risalata rabbee wanasahtu lakum walakin la tuhibboona alnnasiheena (al-ʾAʿrāf 7:79)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

फिर वह यह कहता हुआ उनके यहाँ से फिरा, 'ऐ मेरी क़ौम के लोगों! मैं तो तुम्हें अपने रब का संदेश पहुँचा चुका और मैंने तुम्हारा हित चाहा। परन्तु तुम्हें अपने हितैषी पसन्द ही नहीं आते।'

English Sahih:

And he [i.e., Saleh] turned away from them and said, "O my people, I had certainly conveyed to you the message of my Lord and advised you, but you do not like advisors." ([7] Al-A'raf : 79)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

उसके बाद सालेह उनसे टल गए और (उनसे मुख़ातिब होकर) कहा मेरी क़ौम (आह) मैनें तो अपने परवरदिगार के पैग़ाम तुम तक पहुचा दिए थे और तुम्हारे ख़ैरख्वाही की थी (और ऊँच नीच समझा दिया था) मगर अफसोस तुम (ख़ैरख्वाह) समझाने वालों को अपना दोस्त ही नहीं समझते