فَخَلَفَ مِنْۢ بَعْدِهِمْ خَلْفٌ وَّرِثُوا الْكِتٰبَ يَأْخُذُوْنَ عَرَضَ هٰذَا الْاَدْنٰى وَيَقُوْلُوْنَ سَيُغْفَرُ لَنَاۚ وَاِنْ يَّأْتِهِمْ عَرَضٌ مِّثْلُهٗ يَأْخُذُوْهُۗ اَلَمْ يُؤْخَذْ عَلَيْهِمْ مِّيْثَاقُ الْكِتٰبِ اَنْ لَّا يَقُوْلُوْا عَلَى اللّٰهِ اِلَّا الْحَقَّ وَدَرَسُوْا مَا فِيْهِۗ وَالدَّارُ الْاٰخِرَةُ خَيْرٌ لِّلَّذِيْنَ يَتَّقُوْنَۗ اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ( الأعراف: ١٦٩ )
Fakhalafa min ba'dihim khalfun warithoo alkitaba yakhuthoona 'arada hatha aladna wayaqooloona sayughfaru lana wain yatihim 'aradun mithluhu yakhuthoohu alam yukhath 'alayhim meethaqu alkitabi an la yaqooloo 'ala Allahi illa alhaqqa wadarasoo ma feehi waalddaru alakhiratu khayrun lillatheena yattaqoona afala ta'qiloona (al-ʾAʿrāf 7:169)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
फिर उनके पीछ ऐसे अयोग्य लोगों ने उनकी जगह ली, जो किताब के उत्ताराधिकारी होकर इसी तुच्छ संसार का सामान समेटते है और कहते है, 'हमें अवश्य क्षमा कर दिया जाएगा।' और यदि इस जैसा और सामान भी उनके पास आ जाए तो वे उसे भी ले लेंगे। क्या उनसे किताब का यह वचन नहीं लिया गया था कि वे अल्लाह पर थोपकर हक़ के सिवा कोई और बात न कहें। और जो उसमें है उसे वे स्वयं पढ़ भी चुके है। और आख़िरत का घर तो उन लोगों के लिए उत्तम है, जो डर रखते है। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?
English Sahih:
And there followed them successors who inherited the Scripture [while] taking the commodities of this lower life and saying, "It will be forgiven for us." And if an offer like it comes to them, they will [again] take it. Was not the covenant of the Scripture [i.e., the Torah] taken from them that they would not say about Allah except the truth, and they studied what was in it? And the home of the Hereafter is better for those who fear Allah, so will you not use reason? ([7] Al-A'raf : 169)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
फिर उनके बाद कुछ जानशीन हुए जो किताब (ख़ुदा तौरैत) के तो वारिस बने (मगर लोगों के कहने से एहकामे ख़ुदा को बदलकर (उसके ऐवज़) नापाक कमीनी दुनिया के सामान ले लेते हैं (और लुत्फ तो ये है) कहते हैं कि हम तो अनक़रीब बख्श दिए जाएंगें (और जो लोग उन पर तान करते हैं) अगर उनके पास भी वैसा ही (दूसरा सामान आ जाए तो उसे ये भी न छोड़े और) ले ही लें क्या उनसे किताब (ख़ुदा तौरैत) का एहदो पैमान नहीं लिया गया था कि ख़ुदा पर सच के सिवा (झूठ कभी) नहीं कहेगें और जो कुछ उस किताब में है उन्होनें (अच्छी तरह) पढ़ लिया है और आख़िर का घर तो उन्हीं लोगों के वास्ते ख़ास है जो परहेज़गार हैं तो क्या तुम (इतना भी नहीं समझते)