وَاِذْ قَالَتْ اُمَّةٌ مِّنْهُمْ لِمَ تَعِظُوْنَ قَوْمًاۙ ۨاللّٰهُ مُهْلِكُهُمْ اَوْ مُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا شَدِيْدًاۗ قَالُوْا مَعْذِرَةً اِلٰى رَبِّكُمْ وَلَعَلَّهُمْ يَتَّقُوْنَ ( الأعراف: ١٦٤ )
Waith qalat ommatun minhum lima ta'ithoona qawman Allahu muhlikuhum aw mu'aththibuhum 'athaban shadeedan qaloo ma'thiratan ila rabbikum wala'allahum yattaqoona (al-ʾAʿrāf 7:164)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और जब उनके एक गिरोह ने कहा, 'तुम ऐसे लोगों को क्यों नसीहत किए जा रहे हो, जिन्हें अल्लाह विनष्ट करनेवाला है या जिन्हें वह कठोर यातना देनेवाला है?' उन्होंने कहा, 'तुम्हारे रब के समक्ष अपने को निरपराध सिद्ध करने के लिए, और कदाचित वे (अवज्ञा से) बचें।'
English Sahih:
And when a community among them said, "Why do you advise [or warn] a people whom Allah is [about] to destroy or to punish with a severe punishment?" they [the advisors] said, "To be absolved before your Lord and perhaps they may fear Him." ([7] Al-A'raf : 164)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और जब उनमें से एक जमाअत ने (उन लोगों में से जो शुम्बे के दिन शिकार को मना करते थे) कहा कि जिन्हें ख़ुदा हलाक़ करना या सख्त अज़ाब में मुब्तिला करना चाहता है उन्हें (बेफायदे) क्यो नसीहत करते हो तो वह कहने लगे कि फक़त तुम्हारे परवरदिगार में (अपने को) इल्ज़ाम से बचाने के लिए यायद इसलिए कि ये लोग परहेज़गारी एख्तियार करें