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وَمَا تَنْقِمُ مِنَّآ اِلَّآ اَنْ اٰمَنَّا بِاٰيٰتِ رَبِّنَا لَمَّا جَاۤءَتْنَا ۗرَبَّنَآ اَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَّتَوَفَّنَا مُسْلِمِيْنَ ࣖ   ( الأعراف: ١٢٦ )

And not
وَمَا
और नहीं
you take revenge
تَنقِمُ
तुम नाराज़ होते
from us
مِنَّآ
हमसे
except
إِلَّآ
मगर
that
أَنْ
ये कि
we believed
ءَامَنَّا
ईमान लाए हम
in (the) Signs
بِـَٔايَٰتِ
निशानियों पर
(of) our Lord
رَبِّنَا
अपने रब की
when
لَمَّا
जब
they came to us
جَآءَتْنَاۚ
वो आईं हमारे पास
Our Lord!
رَبَّنَآ
ऐ हमारे रब
Pour
أَفْرِغْ
उँडेल दे
upon us
عَلَيْنَا
हम पर
patience
صَبْرًا
सब्र
and cause us to die
وَتَوَفَّنَا
और फ़ौत कर हमें
(as) Muslims"
مُسْلِمِينَ
इस हाल में कि मुसलमान हों

Wama tanqimu minna illa an amanna biayati rabbina lamma jaatna rabbana afrigh 'alayna sabran watawaffana muslimeena (al-ʾAʿrāf 7:126)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

'और तू केबल इस क्रोध से हमें कष्ट पहुँचाने के लिए पीछे पड़ गया है कि हम अपने रब की निशानियों पर ईमान ले आए। हमारे रब! हमपर धैर्य उड़ेल दे और हमें इस दशा में उठा कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो।'

English Sahih:

And you do not resent us except because we believed in the signs of our Lord when they came to us. Our Lord, pour upon us patience and let us die as Muslims [in submission to You]." ([7] Al-A'raf : 126)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

तू हमसे उसके सिवा और काहे की अदावत रखता है कि जब हमारे पास ख़ुदा की निशानियाँ आयी तो हम उन पर ईमान लाए (और अब तो हमारी ये दुआ है कि) ऐ हमारे परवरदिगार हम पर सब्र (का मेंह बरसा)