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اَمْ لَكُمْ اَيْمَانٌ عَلَيْنَا بَالِغَةٌ اِلٰى يَوْمِ الْقِيٰمَةِۙ اِنَّ لَكُمْ لَمَا تَحْكُمُوْنَۚ  ( القلم: ٣٩ )

Or
أَمْ
या
(do) you have
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
oaths
أَيْمَٰنٌ
क़समें हैं
from us
عَلَيْنَا
हम पर
reaching
بَٰلِغَةٌ
पहुँचने वाली
to
إِلَىٰ
क़यामत के दिन तक
(the) Day
يَوْمِ
क़यामत के दिन तक
(of) the Resurrection
ٱلْقِيَٰمَةِۙ
क़यामत के दिन तक
That
إِنَّ
कि बेशक
for you
لَكُمْ
तुम्हारे लिए
(is) what
لَمَا
अलबत्ता वो है जो
you judge?
تَحْكُمُونَ
तुम फ़ैसला करोगे

Am lakum aymanun 'alayna balighatun ila yawmi alqiyamati inna lakum lama tahkumoona (al-Q̈alam 68:39)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

या तुमने हमसे क़समें ले रखी है जो क़ियामत के दिन तक बाक़ी रहनेवाली है कि तुम्हारे लिए वही कुछ है जो तुम फ़ैसला करो!

English Sahih:

Or do you have oaths [binding] upon Us, extending until the Day of Resurrection, that indeed for you is whatever you judge? ([68] Al-Qalam : 39)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

या तुमने हमसे क़समें ले रखी हैं जो रोज़े क़यामत तक चली जाएगी कि जो कुछ तुम हुक्म दोगे वही तुम्हारे लिए ज़रूर हाज़िर होगा