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اِنَّا بَلَوْنٰهُمْ كَمَا بَلَوْنَآ اَصْحٰبَ الْجَنَّةِۚ اِذْ اَقْسَمُوْا لَيَصْرِمُنَّهَا مُصْبِحِيْنَۙ  ( القلم: ١٧ )

Indeed We
إِنَّا
बेशक हम
have tried them
بَلَوْنَٰهُمْ
आज़माया हमने उन्हें
as
كَمَا
जैसा कि
We tried
بَلَوْنَآ
आज़माया हमने
(the) companions
أَصْحَٰبَ
बाग़ वालों को
(of) the garden
ٱلْجَنَّةِ
बाग़ वालों को
when
إِذْ
जब
they swore
أَقْسَمُوا۟
उन्होंने क़सम खाई
to pluck its fruit
لَيَصْرِمُنَّهَا
अलबत्ता वो ज़रूर काट लेंगे उसे
(in the) morning
مُصْبِحِينَ
सुबह सवेरे ही

Inna balawnahum kama balawna ashaba aljannati ith aqsamoo layasrimunnaha musbiheena (al-Q̈alam 68:17)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

हमने उन्हें परीक्षा में डाला है जैसे बाग़वालों को परीक्षा में डाला था, जबकि उन्होंने क़सम खाई कि वे प्रातःकाल अवश्य उस (बाग़) के फल तोड़ लेंगे

English Sahih:

Indeed, We have tried them as We tried the companions of the garden, when they swore to cut its fruit in the [early] morning ([68] Al-Qalam : 17)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

जिस तरह हमने एक बाग़ वालों का इम्तेहान लिया था उसी तरह उनका इम्तेहान लिया जब उन्होने क़समें खा खाकर कहा कि सुबह होते हम उसका मेवा ज़रूर तोड़ डालेंगे