يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِذَا جَاۤءَكُمُ الْمُؤْمِنٰتُ مُهٰجِرٰتٍ فَامْتَحِنُوْهُنَّۗ اَللّٰهُ اَعْلَمُ بِاِيْمَانِهِنَّ فَاِنْ عَلِمْتُمُوْهُنَّ مُؤْمِنٰتٍ فَلَا تَرْجِعُوْهُنَّ اِلَى الْكُفَّارِۗ لَا هُنَّ حِلٌّ لَّهُمْ وَلَا هُمْ يَحِلُّوْنَ لَهُنَّۗ وَاٰتُوْهُمْ مَّآ اَنْفَقُوْاۗ وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ اَنْ تَنْكِحُوْهُنَّ اِذَآ اٰتَيْتُمُوْهُنَّ اُجُوْرَهُنَّۗ وَلَا تُمْسِكُوْا بِعِصَمِ الْكَوَافِرِ وَسْـَٔلُوْا مَآ اَنْفَقْتُمْ وَلْيَسْـَٔلُوْا مَآ اَنْفَقُوْاۗ ذٰلِكُمْ حُكْمُ اللّٰهِ ۗيَحْكُمُ بَيْنَكُمْۗ وَاللّٰهُ عَلِيْمٌ حَكِيْمٌ ( الممتحنة: ١٠ )
Ya ayyuha allatheena amanoo itha jaakumu almuminatu muhajiratin faimtahinoohunna Allahu a'lamu bieemanihinna fain 'alimtumoohunna muminatin fala tarji'oohunna ila alkuffari la hunna hillun lahum wala hum yahilloona lahunna waatoohum ma anfaqoo wala junaha 'alaykum an tankihoohunna itha ataytumoohunna ojoorahunna wala tumsikoo bi'isami alkawafiri waisaloo ma anfaqtum walyasaloo ma anfaqoo thalikum hukmu Allahi yahkumu baynakum waAllahu 'aleemun hakeemun (al-Mumtaḥanah 60:10)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम्हारे पास ईमान की दावेदार स्त्रियाँ हिजरत करके आएँ तो तुम उन्हें जाँच लिया करो। यूँ तो अल्लाह उनके ईमान से भली-भाँति परिचित है। फिर यदि वे तुम्हें ईमानवाली मालूम हो, तो उन्हें इनकार करनेवालों (अधर्मियों) की ओर न लौटाओ। न तो वे स्त्रियाँ उनके लिए वैद्य है और न वे उन स्त्रियों के लिए वैद्य है। और जो कुछ उन्होंने ख़र्च किया हो तुम उन्हें दे दो और इसमें तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि तुम उनसे विवाह कर लो, जबकि तुम उन्हें महर अदा कर दो। और तुम स्वयं भी इनकार करनेवाली स्त्रियों के सतीत्व को अपने अधिकार में न रखो। और जो कुछ तुमने ख़र्च किया हो माँग लो। और उन्हें भी चाहिए कि जो कुछ उन्होंने ख़र्च किया हो माँग ले। यह अल्लाह का आदेश है। वह तुम्हारे बीच फ़ैसला करता है। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है
English Sahih:
O you who have believed, when the believing women come to you as emigrants, examine [i.e., test] them. Allah is most knowing as to their faith. And if you know them to be believers, then do not return them to the disbelievers; they are not lawful [wives] for them, nor are they lawful [husbands] for them. But give them [i.e., the disbelievers] what they have spent. And there is no blame upon you if you marry them when you have given them their due compensation [i.e., mahr]. And hold not to marriage bonds with disbelieving women, but ask for what you have spent and let them [i.e., the disbelievers] ask for what they have spent. That is the judgement of Allah; He judges between you. And Allah is Knowing and Wise. ([60] Al-Mumtahanah : 10)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ऐ ईमानदारों जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें वतन छोड़ कर आएँ तो तुम उनको आज़मा लो, ख़ुदा तो उनके ईमान से वाकिफ़ है ही, पस अगर तुम भी उनको ईमानदार समझो तो उन्ही काफ़िरों के पास वापस न फेरो न ये औरतें उनके लिए हलाल हैं और न वह कुफ्फ़ार उन औरतों के लिए हलाल हैं और उन कुफ्फार ने जो कुछ (उन औरतों के मेहर में) ख़र्च किया हो उनको दे दो, और जब उनका महर उन्हें दे दिया करो तो इसका तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि तुम उससे निकाह कर लो और काफिर औरतों की आबरू (जो तुम्हारी बीवियाँ हों) अपने कब्ज़े में न रखो (छोड़ दो कि कुफ्फ़ार से जा मिलें) और तुमने जो कुछ (उन पर) ख़र्च किया हो (कुफ्फ़ार से) लो, और उन्होने भी जो कुछ ख़र्च किया हो तुम से माँग लें यही ख़ुदा का हुक्म है जो तुम्हारे दरमियान सादिर करता है और ख़ुदा वाक़िफ़कार हकीम है