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وَلَوْ تَرٰٓى اِذْ وُقِفُوْا عَلَى النَّارِ فَقَالُوْا يٰلَيْتَنَا نُرَدُّ وَلَا نُكَذِّبَ بِاٰيٰتِ رَبِّنَا وَنَكُوْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ   ( الأنعام: ٢٧ )

And if
وَلَوْ
और काश
you (could) see
تَرَىٰٓ
आप देखें
when
إِذْ
जब
they are made to stand
وُقِفُوا۟
वो खड़े किए जाऐंगे
by
عَلَى
ऊपर आग के
the Fire
ٱلنَّارِ
ऊपर आग के
then they (will) say
فَقَالُوا۟
तो वो कहेंगे
"Oh! Would that we
يَٰلَيْتَنَا
ऐ काश हम
were sent back
نُرَدُّ
हम लौटाए जाऐं
and not
وَلَا
और ना
we would deny
نُكَذِّبَ
हम झुठलाऐं
(the) Signs
بِـَٔايَٰتِ
आयात को
(of) our Lord
رَبِّنَا
अपने रब की
and we would be
وَنَكُونَ
और हम हों
among
مِنَ
मोमिनों मे से
the believers"
ٱلْمُؤْمِنِينَ
मोमिनों मे से

Walaw tara ith wuqifoo 'ala alnnari faqaloo ya laytana nuraddu wala nukaththiba biayati rabbina wanakoona mina almumineena (al-ʾAnʿām 6:27)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

और यदि तुम उस समय देख सकते, जब वे आग के निकट खड़े किए जाएँगे और कहेंगे, 'काश! क्या ही अच्छा होता कि हम फिर लौटा दिए जाएँ (कि माने) और अपने रब की आयतों को न झुठलाएँ और माननेवालों में हो जाएँ।'

English Sahih:

If you could but see when they are made to stand before the Fire and will say, "Oh, would that we could be returned [to life on earth] and not deny the signs of our Lord and be among the believers." ([6] Al-An'am : 27)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

(ऐ रसूल) अगर तुम उन लोगों को उस वक्त देखते (तो ताज्जुब करते) जब जहन्नुम (के किनारे) पर लाकर खड़े किए जाओगे तो (उसे देखकर) कहेगें ऐ काश हम (दुनिया में) फिर (दुबारा) लौटा भी दिए जाते और अपने परवरदिगार की आयतों को न झुठलाते और हम मोमिनीन से होते (मगर उनकी आरज़ू पूरी न होगी)