۞ وَهُوَ الَّذِيْٓ اَنْشَاَ جَنّٰتٍ مَّعْرُوْشٰتٍ وَّغَيْرَ مَعْرُوْشٰتٍ وَّالنَّخْلَ وَالزَّرْعَ مُخْتَلِفًا اُكُلُهٗ وَالزَّيْتُوْنَ وَالرُّمَّانَ مُتَشَابِهًا وَّغَيْرَ مُتَشَابِهٍۗ كُلُوْا مِنْ ثَمَرِهٖٓ اِذَآ اَثْمَرَ وَاٰتُوْا حَقَّهٗ يَوْمَ حَصَادِهٖۖ وَلَا تُسْرِفُوْا ۗاِنَّهٗ لَا يُحِبُّ الْمُسْرِفِيْنَۙ ( الأنعام: ١٤١ )
Wahuwa allathee anshaa jannatin ma'rooshatin waghayra ma'rooshatin waalnnakhla waalzzar'a mukhtalifan okuluhu waalzzaytoona waalrrummana mutashabihan waghayra mutashabihin kuloo min thamarihi itha athmara waatoo haqqahu yawma hasadihi wala tusrifoo innahu la yuhibbu almusrifeena (al-ʾAnʿām 6:141)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और वही है जिसने बाग़ पैदा किए; कुछ जालियों पर चढ़ाए जाते है और कुछ नहीं चढ़ाए जाते और खजूर और खेती भी जिनकी पैदावार विभिन्न प्रकार की होती है, और ज़ैतून और अनार जो एक-दूसरे से मिलते-जुलते भी है और नहीं भी मिलते है। जब वह फल दे, तो उसका फल खाओ और उसका हक़ अदा करो जो उस (फ़सल) की कटाई के दिन वाजिब होता है। और हद से आगे न बढ़ो, क्योंकि वह हद से आगे बढ़नेवालों को पसन्द नहीं करता
English Sahih:
And He it is who causes gardens to grow, [both] trellised and untrellised, and palm trees and crops of different [kinds of] food and olives and pomegranates, similar and dissimilar. Eat of [each of] its fruit when it yields and give its due [Zakah] on the day of its harvest. And be not excessive. Indeed, He does not like those who commit excess. ([6] Al-An'am : 141)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और वह तो वही ख़ुदा है जिसने बहुतेरे बाग़ पैदा किए (जिनमें मुख्तलिफ दरख्त हैं - कुछ तो अंगूर की तरह टट्टियों पर) चढ़ाए हुए और (कुछ) बे चढ़ाए हुए और खजूर के दरख्त और खेती जिसमें फल मुख्तलिफ़ किस्म के हैं और ज़ैतून और अनार बाज़ तो सूरत रंग मज़े में, मिलते जुलते और (बाज़) बेमेल (लोगों) जब ये चीज़े फलें तो उनका फल खाओ और उन चीज़ों के काटने के दिन ख़ुदा का हक़ (ज़कात) दे दो और ख़बरदार फज़ूल ख़र्ची न करो - क्यों कि वह (ख़ुदा) फुज़ूल ख़र्चे से हरगिज़ उलफत नहीं रखता