مَا قَطَعْتُمْ مِّنْ لِّيْنَةٍ اَوْ تَرَكْتُمُوْهَا قَاۤىِٕمَةً عَلٰٓى اُصُوْلِهَا فَبِاِذْنِ اللّٰهِ وَلِيُخْزِيَ الْفٰسِقِيْنَ ( الحشر: ٥ )
Whatever
مَا
जो भी
you cut down
قَطَعْتُم
काटा तुमने
of
مِّن
खजूर का दरख़्त
(the) palm-trees
لِّينَةٍ
खजूर का दरख़्त
or
أَوْ
या
you left them
تَرَكْتُمُوهَا
छोड़ दिया तुमने उसे
standing
قَآئِمَةً
खड़ा
on
عَلَىٰٓ
उसकी जड़ों पर
their roots
أُصُولِهَا
उसकी जड़ों पर
it (was) by the permission
فَبِإِذْنِ
तो अल्लाह के इज़्न से था
(of) Allah
ٱللَّهِ
तो अल्लाह के इज़्न से था
and that He may disgrace
وَلِيُخْزِىَ
और ताकि वो रुस्वा करे
the defiantly disobedient
ٱلْفَٰسِقِينَ
फ़ासिक़ों को
Ma qata'tum min leenatin aw taraktumooha qaimatan 'ala osooliha fabiithni Allahi waliyukhziya alfasiqeena (al-Ḥašr 59:5)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुमने खजूर के जो वृक्ष काटे या उन्हें उनकी जड़ों पर खड़ा छोड़ दिया तो यह अल्लाह ही की अनुज्ञा से हुआ (ताकि ईमानवालों के लिए आसानी पैदा करे) और इसलिए कि वह अवज्ञाकारियों को रुसवा करे
English Sahih:
Whatever you have cut down of [their] palm trees or left standing on their trunks – it was by permission of Allah and so He would disgrace the defiantly disobedient. ([59] Al-Hashr : 5)