وَمَا لَكُمْ لَا تُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ ۚوَالرَّسُوْلُ يَدْعُوْكُمْ لِتُؤْمِنُوْا بِرَبِّكُمْ وَقَدْ اَخَذَ مِيْثَاقَكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ ( الحديد: ٨ )
And what
وَمَا
और क्या है
(is) for you
لَكُمْ
तुम्हें
(that) not
لَا
नहीं तुम ईमान लाते
you believe
تُؤْمِنُونَ
नहीं तुम ईमान लाते
in Allah
بِٱللَّهِۙ
अल्लाह पर
while the Messenger
وَٱلرَّسُولُ
जब कि रसूल
calls you
يَدْعُوكُمْ
वो दावत देता है तुम्हें
that you believe
لِتُؤْمِنُوا۟
कि तुम ईमान लाओ
in your Lord
بِرَبِّكُمْ
अपने रब पर
and indeed
وَقَدْ
हालाँकि तहक़ीक़
He has taken
أَخَذَ
उसने लिया है
your covenant
مِيثَٰقَكُمْ
पुख़्ता अहद तुमसे
if
إِن
अगर
you are
كُنتُم
हो तुम
believers
مُّؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले
Wama lakum la tuminoona biAllahi waalrrasoolu yad'ookum lituminoo birabbikum waqad akhatha meethaqakum in kuntum mumineena (al-Ḥadīd 57:8)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम्हें क्या हो गया है कि तुम अल्लाह पर ईमान नहीं लाते; जबकि रसूल तुम्हें निमंत्रण दे रहा है कि तुम अपने रब पर ईमान लाओ और वह तुमसे दृढ़ वचन भी ले चुका है, यदि तुम मोमिन हो
English Sahih:
And why do you not believe in Allah while the Messenger invites you to believe in your Lord and He has taken your covenant, if you should [truly] be believers? ([57] Al-Hadid : 8)