لِّكَيْلَا تَأْسَوْا عَلٰى مَا فَاتَكُمْ وَلَا تَفْرَحُوْا بِمَآ اٰتٰىكُمْ ۗوَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَالٍ فَخُوْرٍۙ ( الحديد: ٢٣ )
So that you may not
لِّكَيْلَا
ताकि ना
grieve
تَأْسَوْا۟
तुम अफ़सोस करो
over
عَلَىٰ
उस पर जो
what
مَا
उस पर जो
has escaped you
فَاتَكُمْ
खो जाए तुमसे
and (do) not
وَلَا
और ना
exult
تَفْرَحُوا۟
तुम इतराओ
at what
بِمَآ
उस पर जो
He has given you
ءَاتَىٰكُمْۗ
उसने दिया तुम्हें
And Allah
وَٱللَّهُ
और अल्लाह
(does) not
لَا
नहीं
love
يُحِبُّ
वो पसंद करता
every
كُلَّ
हर
self-deluded
مُخْتَالٍ
ख़ुदपसंद
boaster
فَخُورٍ
फ़ख़्र करने वाले को
Likayla tasaw 'ala ma fatakum wala tafrahoo bima atakum waAllahu la yuhibbu kulla mukhtalin fakhoorin (al-Ḥadīd 57:23)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
(यह बात तुम्हें इसलिए बता दी गई) ताकि तुम उस चीज़ का अफ़सोस न करो जो तुम पर जाती रहे और न उसपर फूल जाओ जो उसने तुम्हें प्रदान की हो। अल्लाह किसी इतरानेवाले, बड़ाई जतानेवाले को पसन्द नहीं करता
English Sahih:
In order that you not despair over what has eluded you and not exult [in pride] over what He has given you. And Allah does not like everyone self-deluded and boastful – ([57] Al-Hadid : 23)