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اَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اَنْ تَخْشَعَ قُلُوْبُهُمْ لِذِكْرِ اللّٰهِ وَمَا نَزَلَ مِنَ الْحَقِّۙ وَلَا يَكُوْنُوْا كَالَّذِيْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلُ فَطَالَ عَلَيْهِمُ الْاَمَدُ فَقَسَتْ قُلُوْبُهُمْۗ وَكَثِيْرٌ مِّنْهُمْ فٰسِقُوْنَ   ( الحديد: ١٦ )

Has not
أَلَمْ
क्या नहीं
come (the) time
يَأْنِ
वक़्त आया
for those who
لِلَّذِينَ
उनके लिए जो
believed
ءَامَنُوٓا۟
ईमान लाए
that
أَن
कि
become humble
تَخْشَعَ
झुक जाऐं
their hearts
قُلُوبُهُمْ
दिल उनके
at (the) remembrance (of) Allah
لِذِكْرِ
ज़िक्र के लिए
at (the) remembrance (of) Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह के
and what
وَمَا
और जो
has come down
نَزَلَ
नाज़िल हुआ
of
مِنَ
हक़ में से
the truth?
ٱلْحَقِّ
हक़ में से
And not
وَلَا
और ना
they become
يَكُونُوا۟
वो हो जाऐं
like those who
كَٱلَّذِينَ
उन लोगों की तरह जो
were given
أُوتُوا۟
दिए गए
the Book
ٱلْكِتَٰبَ
किताब
before
مِن
उससे क़ब्ल
before
قَبْلُ
उससे क़ब्ल
(and) was prolonged
فَطَالَ
तो तवील हो गई
for them
عَلَيْهِمُ
उन पर
the term
ٱلْأَمَدُ
मुद्दत
so hardened
فَقَسَتْ
तो सख़्त हो गए
their hearts
قُلُوبُهُمْۖ
दिल उनके
and many
وَكَثِيرٌ
और अक्सर
of them
مِّنْهُمْ
उनमें से
(are) defiantly disobedient
فَٰسِقُونَ
नाफ़रमान हैं

Alam yani lillatheena amanoo an takhsha'a quloobuhum lithikri Allahi wama nazala mina alhaqqi wala yakoonoo kaallatheena ootoo alkitaba min qablu fatala 'alayhimu alamadu faqasat quloobuhum wakatheerun minhum fasiqoona (al-Ḥadīd 57:16)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

क्या उन लोगों के लिए, जो ईमान लाए, अभी वह समय नहीं आया कि उनके दिल अल्लाह की याद के लिए और जो सत्य अवतरित हुआ है उसके आगे झुक जाएँ? और वे उन लोगों की तरह न हो जाएँ, जिन्हें किताब दी गई थी, फिर उनपर दीर्ध समय बीत गया। अन्ततः उनके दिल कठोर हो गए और उनमें से अधिकांश अवज्ञाकारी रहे

English Sahih:

Has the time not come for those who have believed that their hearts should become humbly submissive at the remembrance of Allah and what has come down of the truth? And let them not be like those who were given the Scripture before, and a long period passed over them, so their hearts hardened; and many of them are defiantly disobedient. ([57] Al-Hadid : 16)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

क्या ईमानदारों के लिए अभी तक इसका वक्त नहीं आया कि ख़ुदा की याद और क़ुरान के लिए जो (ख़ुदा की तरफ से) नाज़िल हुआ है उनके दिल नरम हों और वह उन लोगों के से न हो जाएँ जिनको उन से पहले किताब (तौरेत, इन्जील) दी गयी थी तो (जब) एक ज़माना दराज़ गुज़र गया तो उनके दिल सख्त हो गए और इनमें से बहुतेरे बदकार हैं