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خُشَّعًا اَبْصَارُهُمْ يَخْرُجُوْنَ مِنَ الْاَجْدَاثِ كَاَنَّهُمْ جَرَادٌ مُّنْتَشِرٌۙ   ( القمر: ٧ )

(Will be) humbled
خُشَّعًا
झुकी हुई होंगी
their eyes
أَبْصَٰرُهُمْ
निगाहें उनकी
they will come forth
يَخْرُجُونَ
वो निकलेंगे
from
مِنَ
क़ब्रों से
the graves
ٱلْأَجْدَاثِ
क़ब्रों से
as if they (were)
كَأَنَّهُمْ
गोया कि वो
locusts
جَرَادٌ
टिड्डियाँ हैं
spreading
مُّنتَشِرٌ
फैली हुईं

Khushsha'an absaruhum yakhrujoona mina alajdathi kaannahum jaradun muntashirun (al-Q̈amar 54:7)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

वे अपनी झुकी हुई निगाहों के साथ अपनी क्रबों से निकल रहे होंगे, मानो वे बिखरी हुई टिड्डियाँ है;

English Sahih:

Their eyes humbled, they will emerge from the graves as if they were locusts spreading, ([54] Al-Qamar : 7)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

तो (निदामत से) ऑंखें नीचे किए हुए कब्रों से निकल पड़ेंगे गोया वह फैली हुई टिड्डियाँ हैं