لَا يُؤَاخِذُكُمُ اللّٰهُ بِاللَّغْوِ فِيْٓ اَيْمَانِكُمْ وَلٰكِنْ يُّؤَاخِذُكُمْ بِمَا عَقَّدْتُّمُ الْاَيْمَانَۚ فَكَفَّارَتُهٗٓ اِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسٰكِيْنَ مِنْ اَوْسَطِ مَا تُطْعِمُوْنَ اَهْلِيْكُمْ اَوْ كِسْوَتُهُمْ اَوْ تَحْرِيْرُ رَقَبَةٍ ۗفَمَنْ لَّمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلٰثَةِ اَيَّامٍ ۗذٰلِكَ كَفَّارَةُ اَيْمَانِكُمْ اِذَا حَلَفْتُمْ ۗوَاحْفَظُوْٓا اَيْمَانَكُمْ ۗ كَذٰلِكَ يُبَيِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰيٰتِهٖ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ( المائدة: ٨٩ )
La yuakhithukumu Allahu biallaghwi fee aymanikum walakin yuakhithukum bima 'aqqadtumu alaymana fakaffaratuhu it'amu 'asharati masakeena min awsati ma tut'imoona ahleekum aw kiswatuhum aw tahreeru raqabatin faman lam yajid fasiyamu thalathati ayyamin thalika kaffaratu aymanikum itha halaftum waihfathoo aymanakum kathalika yubayyinu Allahu lakum ayatihi la'allakum tashkuroona (al-Māʾidah 5:89)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम्हारी उन क़समों पर अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता जो यूँ ही असावधानी से ज़बान से निकल जाती है। परन्तु जो तुमने पक्की क़समें खाई हों, उनपर वह तुम्हें पकड़ेगा। तो इसका प्रायश्चित दस मुहताजों को औसत दर्जें का खाना खिला देना है, जो तुम अपने बाल-बच्चों को खिलाते हो या फिर उन्हें कपड़े पहनाना या एक ग़ुलाम आज़ाद करना होगा। और जिसे इसकी सामर्थ्य न हो, तो उसे तीन दिन के रोज़े रखने होंगे। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जबकि तुम क़सम खा बैठो। तुम अपनी क़समों की हिफ़ाजत किया करो। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें तुम्हारे सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ
English Sahih:
Allah will not impose blame upon you for what is meaningless in your oaths, but He will impose blame upon you for [breaking] what you intended of oaths. So its expiation is the feeding of ten needy people from the average of that which you feed your [own] families or clothing them or the freeing of a slave. But whoever cannot find [or afford it] – then a fast of three days [is required]. That is the expiation for oaths when you have sworn. But guard your oaths. Thus does Allah make clear to you His verses [i.e., revealed law] that you may be grateful. ([5] Al-Ma'idah : 89)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ख़ुदा तुम्हारे बेकार (बेकार) क़समों (के खाने) पर तो ख़ैर गिरफ्तार न करेगा मगर बाक़सद (सच्ची) पक्की क़सम खाने और उसके ख़िलाफ करने पर तो ज़रुर तुम्हारी ले दे करेगा (लो सुनो) उसका जुर्माना जैसा तुम ख़ुद अपने एहलोअयाल को खिलाते हो उसी क़िस्म का औसत दर्जे का दस मोहताजों को खाना खिलाना या उनको कपड़े पहनाना या एक गुलाम आज़ाद करना है फिर जिससे यह सब न हो सके तो मैं तीन दिन के रोज़े (रखना) ये (तो) तुम्हारी क़समों का जुर्माना है जब तुम क़सम खाओ (और पूरी न करो) और अपनी क़समों (के पूरा न करने) का ख्याल रखो ख़ुदा अपने एहकाम को तुम्हारे वास्ते यूँ साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम शुक्र करो