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وَمَا لَنَا لَا نُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَمَا جَاۤءَنَا مِنَ الْحَقِّۙ وَنَطْمَعُ اَنْ يُّدْخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ الْقَوْمِ الصّٰلِحِيْنَ  ( المائدة: ٨٤ )

And what
وَمَا
और क्या है
for us (that)
لَنَا
हमें
not
لَا
कि ना हम ईमान लाऐं
we believe
نُؤْمِنُ
कि ना हम ईमान लाऐं
in Allah
بِٱللَّهِ
अल्लाह पर
and what
وَمَا
और (उस पर) जो
came (to) us
جَآءَنَا
आया हमारे पास
from
مِنَ
हक़ में से
the truth?
ٱلْحَقِّ
हक़ में से
And we hope
وَنَطْمَعُ
और हम उम्मीद रखते हैं
that
أَن
कि
will admit us
يُدْخِلَنَا
दाख़िल करेगा हमें
our Lord
رَبُّنَا
रब हमारा
with
مَعَ
साथ
the people"
ٱلْقَوْمِ
उन लोगों के
the righteous"
ٱلصَّٰلِحِينَ
जो सालेह हैं

Wama lana la numinu biAllahi wama jaana mina alhaqqi wanatma'u an yudkhilana rabbuna ma'a alqawmi alssaliheena (al-Māʾidah 5:84)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

'और हम अल्लाह पर और जो सत्य हमारे पास पहुँचा है उसपर ईमान क्यों न लाएँ, जबकि हमें आशा है कि हमारा रब हमें अच्छे लोगों के साथ (जन्नत में) प्रविष्ट, करेगा।'

English Sahih:

And why should we not believe in Allah and what has come to us of the truth? And we aspire that our Lord will admit us [to Paradise] with the righteous people." ([5] Al-Ma'idah : 84)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

और हमको क्या हो गया है कि हम ख़ुदा और जो हक़ बात हमारे पास आ चुकी है उस पर तो ईमान न लाएँ और (फिर) ख़ुदा से उम्मीद रखें कि वह अपने नेक बन्दों के साथ हमें (बेहिश्त में) पहुँचा ही देगा