وَاِذَا نَادَيْتُمْ اِلَى الصَّلٰوةِ اتَّخَذُوْهَا هُزُوًا وَّلَعِبًا ۗذٰلِكَ بِاَ نَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْقِلُوْنَ ( المائدة: ٥٨ )
And when
وَإِذَا
और जब
you make a call
نَادَيْتُمْ
पुकारते हो तुम
for
إِلَى
तरफ़ नमाज़ के
the prayer
ٱلصَّلَوٰةِ
तरफ़ नमाज़ के
they take it
ٱتَّخَذُوهَا
वो बना लेते हैं उसे
(in) ridicule
هُزُوًا
मज़ाक़
and fun
وَلَعِبًاۚ
और खेल
That
ذَٰلِكَ
ये
(is) because they
بِأَنَّهُمْ
बवजह उसके कि वो
(are) a people
قَوْمٌ
ऐसे लोग हैं
(who do) not
لَّا
जो अक़्ल नहीं रखते
understand
يَعْقِلُونَ
जो अक़्ल नहीं रखते
Waitha nadaytum ila alssalati ittakhathooha huzuwan wala'iban thalika biannahum qawmun la ya'qiloona (al-Māʾidah 5:58)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो तो वे उसे हँसी और खेल बना लेते है। इसका कारण यह है कि वे बुद्धिहीन लोग है
English Sahih:
And when you call to prayer, they take it in ridicule and amusement. That is because they are a people who do not use reason. ([5] Al-Ma'idah : 58)