وَكَيْفَ يُحَكِّمُوْنَكَ وَعِنْدَهُمُ التَّوْرٰىةُ فِيْهَا حُكْمُ اللّٰهِ ثُمَّ يَتَوَلَّوْنَ مِنْۢ بَعْدِ ذٰلِكَ ۗوَمَآ اُولٰۤىِٕكَ بِالْمُؤْمِنِيْنَ ࣖ ( المائدة: ٤٣ )
But how can
وَكَيْفَ
और किस तरह
they appoint you a judge
يُحَكِّمُونَكَ
वो मुन्सिफ़ बनाते हैं आपको
while they (have) with them
وَعِندَهُمُ
हालाँकि उनके पास
the Taurat
ٱلتَّوْرَىٰةُ
तौरात है
in it
فِيهَا
जिसमें
(is the) Command
حُكْمُ
हुक्म है
(of) Allah?
ٱللَّهِ
अल्लाह का
Then
ثُمَّ
फिर
they turn away
يَتَوَلَّوْنَ
वो मुँह मोड़ जाते हैं
from
مِنۢ
बाद
after
بَعْدِ
बाद
that
ذَٰلِكَۚ
इसके
and not
وَمَآ
और नहीं
those
أُو۟لَٰٓئِكَ
ये लोग
(are) the believers
بِٱلْمُؤْمِنِينَ
ईमान लाने वाले
Wakayfa yuhakkimoonaka wa'indahumu alttawratu feeha hukmu Allahi thumma yatawallawna min ba'di thalika wama olaika bialmumineena (al-Māʾidah 5:43)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
वे तुमसे फ़ैसला कराएँगे भी कैसे, जबकि उनके पास तौरात है, जिसमें अल्लाह का हुक्म मौजूद है! फिर इसके पश्चात भी वे मुँह मोड़ते है। वे तो ईमान नहीं रखते
English Sahih:
But how is it that they come to you for judgement while they have the Torah, in which is the judgement of Allah? Then they turn away, [even] after that; but those are not [in fact] believers. ([5] Al-Ma'idah : 43)