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قَالَ فَاِنَّهَا مُحَرَّمَةٌ عَلَيْهِمْ اَرْبَعِيْنَ سَنَةً ۚيَتِيْهُوْنَ فِى الْاَرْضِۗ فَلَا تَأْسَ عَلَى الْقَوْمِ الْفٰسِقِيْنَ ࣖ  ( المائدة: ٢٦ )

(Allah) said
قَالَ
फ़रमाया
"Then indeed it
فَإِنَّهَا
पस बेशक वो
(will be) forbidden
مُحَرَّمَةٌ
हराम कर दी गई
to them
عَلَيْهِمْۛ
उन पर
(for) forty
أَرْبَعِينَ
चालीस
years
سَنَةًۛ
साल
they will wander
يَتِيهُونَ
वो भटकते फिरेंगे
in
فِى
ज़मीन में
the earth
ٱلْأَرْضِۚ
ज़मीन में
So (do) not
فَلَا
पस ना
grieve
تَأْسَ
तुम अफ़सोस करो
over
عَلَى
उन लोगों पर
the people"
ٱلْقَوْمِ
उन लोगों पर
the defiantly disobedient"
ٱلْفَٰسِقِينَ
जो फ़ासिक़ हैं

Qala fainnaha muharramatun 'alayhim arba'eena sanatan yateehoona fee alardi fala tasa 'ala alqawmi alfasiqeena (al-Māʾidah 5:26)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

कहा, 'अच्छा तो अब यह भूमि चालीस वर्ष कर इनके लिए वर्जित है। ये धरती में मारे-मारे फिरेंगे तो तुम इन अवज्ञाकारी लोगों के प्रति शोक न करो'

English Sahih:

[Allah] said, "Then indeed, it is forbidden to them for forty years [in which] they will wander throughout the land. So do not grieve over the defiantly disobedient people." ([5] Al-Ma'idah : 26)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

हमारा उनका साथ नहीं हो सकता (ख़ुदा ने फ़रमाया) (अच्छा) तो उनकी सज़ा यह है कि उनको चालीस बरस तक की हुकूमत नसीब न होगा (और उस मुद्दते दराज़ तक) यह लोग (मिस्र के) जंगल में सरगरदॉ रहेंगे तो फिर तुम इन बदचलन बन्दों पर अफ़सोस न करना