يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا لَا تُحِلُّوْا شَعَاۤىِٕرَ اللّٰهِ وَلَا الشَّهْرَ الْحَرَامَ وَلَا الْهَدْيَ وَلَا الْقَلَاۤىِٕدَ وَلَآ اٰۤمِّيْنَ الْبَيْتَ الْحَرَامَ يَبْتَغُوْنَ فَضْلًا مِّنْ رَّبِّهِمْ وَرِضْوَانًا ۗوَاِذَا حَلَلْتُمْ فَاصْطَادُوْا ۗوَلَا يَجْرِمَنَّكُمْ شَنَاٰنُ قَوْمٍ اَنْ صَدُّوْكُمْ عَنِ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ اَنْ تَعْتَدُوْۘا وَتَعَاوَنُوْا عَلَى الْبِرِّ وَالتَّقْوٰىۖ وَلَا تَعَاوَنُوْا عَلَى الْاِثْمِ وَالْعُدْوَانِ ۖوَاتَّقُوا اللّٰهَ ۗاِنَّ اللّٰهَ شَدِيْدُ الْعِقَابِ ( المائدة: ٢ )
Ya ayyuha allatheena amanoo la tuhilloo sha'aira Allahi wala alshshahra alharama wala alhadya wala alqalaida wala ammeena albayta alharama yabtaghoona fadlan min rabbihim waridwanan waitha halaltum faistadoo wala yajrimannakum shanaanu qawmin an saddookum 'ani almasjidi alharami an ta'tadoo wata'awanoo 'ala albirri waalttaqwa wala ta'awanoo 'ala alithmi waal'udwani waittaqoo Allaha inna Allaha shadeedu al'iqabi (al-Māʾidah 5:2)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की निशानियों का अनादर न करो; न आदर के महीनों का, न क़ुरबानी के जानवरों का और न जानवरों का जिनका गरदनों में पट्टे पड़े हो और न उन लोगों का जो अपने रब के अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की चाह में प्रतिष्ठित गृह (काबा) को जाते हो। और जब इहराम की दशा से बाहर हो जाओ तो शिकार करो। और ऐसा न हो कि एक गिरोह की शत्रुता, जिसने तुम्हारे लिए प्रतिष्ठित घर का रास्ता बन्द कर दिया था, तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम ज़्यादती करने लगो। हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम में एक-दूसरे का सहयोग न करो। अल्लाह का डर रखो; निश्चय ही अल्लाह बड़ा कठोर दंड देनेवाला है
English Sahih:
O you who have believed, do not violate the rites of Allah or [the sanctity of] the sacred month or [neglect the marking of] the sacrificial animals and garlanding [them] or [violate the safety of] those coming to the Sacred House seeking bounty from their Lord and [His] approval. But when you come out of ihram, then [you may] hunt. And do not let the hatred of a people for having obstructed you from al-Masjid al-Haram lead you to transgress. And cooperate in righteousness and piety, but do not cooperate in sin and aggression. And fear Allah; indeed, Allah is severe in penalty. ([5] Al-Ma'idah : 2)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ऐ ईमानदारों (देखो) न ख़ुदा की निशानियों की बेतौक़ीरी करो और न हुरमत वाले महिने की और न क़ुरबानी की और न पट्टे वाले जानवरों की (जो नज़रे ख़ुदा के लिए निशान देकर मिना में ले जाते हैं) और न ख़ानाए काबा की तवाफ़ (व ज़ियारत) का क़स्द करने वालों की जो अपने परवरदिगार की ख़ुशनूदी और फ़ज़ल (व करम) के जोयाँ हैं और जब तुम (एहराम) खोल दो तो शिकार कर सकते हो और किसी क़बीले की यह अदावत कि तुम्हें उन लोगों ने ख़ानाए काबा (में जाने) से रोका था इस जुर्म में न फॅसवा दे कि तुम उनपर ज्यादती करने लगो और (तुम्हारा तो फ़र्ज यह है कि ) नेकी और परहेज़गारी में एक दूसरे की मदद किया करो और गुनाह और ज्यादती में बाहम किसी की मदद न करो और ख़ुदा से डरते रहो (क्योंकि) ख़ुदा तो यक़ीनन बड़ा सख्त अज़ाब वाला है