فَبِمَا نَقْضِهِمْ مِّيْثَاقَهُمْ لَعَنّٰهُمْ وَجَعَلْنَا قُلُوْبَهُمْ قٰسِيَةً ۚ يُحَرِّفُوْنَ الْكَلِمَ عَنْ مَّوَاضِعِهٖۙ وَنَسُوْا حَظًّا مِّمَّا ذُكِّرُوْا بِهٖۚ وَلَا تَزَالُ تَطَّلِعُ عَلٰى خَاۤىِٕنَةٍ مِّنْهُمْ اِلَّا قَلِيْلًا مِّنْهُمْ ۖ فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاصْفَحْ ۗاِنَّ اللّٰهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِيْنَ ( المائدة: ١٣ )
Fabima naqdihim meethaqahum la'annahum waja'alna quloobahum qasiyatan yuharrifoona alkalima 'an mawadi'ihi wanasoo haththan mimma thukkiroo bihi wala tazalu tattali'u 'ala khainatin minhum illa qaleelan minhum fao'fu 'anhum waisfah inna Allaha yuhibbu almuhsineena (al-Māʾidah 5:13)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
फिर उनके बार-बार अपने वचन को भंग कर देने के कारण हमने उनपर लानत की और उनके हृदय कठोर कर दिए। वे शब्दों को उनके स्थान से फेरकर कुछ का कुछ कर देते है और जिनके द्वारा उन्हें याद दिलाया गया था, उसका एक बड़ा भाग वे भुला बैठे। और तुम्हें उनके किसी न किसी विश्वासघात का बराबर पता चलता रहेगा। उनमें ऐसा न करनेवाले थोड़े लोग है, तो तुम उन्हें क्षमा कर दो और उन्हें छोड़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उत्तमकर्मी है
English Sahih:
So for their breaking of the covenant We cursed them and made their hearts hardened. They distort words from their [proper] places [i.e., usages] and have forgotten a portion of that of which they were reminded. And you will still observe deceit among them, except a few of them. But pardon them and overlook [their misdeeds]. Indeed, Allah loves the doers of good. ([5] Al-Ma'idah : 13)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
पस हमने उनकीे एहद शिकनी की वजह से उनपर लानत की और उनके दिलों को (गोया) हमने ख़ुद सख्त बना दिया कि (हमारे) कलमात को उनके असली मायनों से बदल कर दूसरे मायनो में इस्तेमाल करते हैं और जिन जिन बातों की उन्हें नसीहत की गयी थी उनमें से एक बड़ा हिस्सा भुला बैठे और (ऐ रसूल) अब तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा एक न एक की ख्यानत पर बराबर मुत्तेला होते रहते हो तो तुम उन (के क़सूर) को माफ़ कर दो और (उनसे) दरगुज़र करो (क्योंकि) ख़ुदा एहसान करने वालों को ज़रूर दोस्त रखता है