فَاِذَا لَقِيْتُمُ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا فَضَرْبَ الرِّقَابِۗ حَتّٰٓى اِذَآ اَثْخَنْتُمُوْهُمْ فَشُدُّوا الْوَثَاقَۖ فَاِمَّا مَنًّاۢ بَعْدُ وَاِمَّا فِدَاۤءً حَتّٰى تَضَعَ الْحَرْبُ اَوْزَارَهَا ەۛ ذٰلِكَ ۛ وَلَوْ يَشَاۤءُ اللّٰهُ لَانْتَصَرَ مِنْهُمْ وَلٰكِنْ لِّيَبْلُوَا۟ بَعْضَكُمْ بِبَعْضٍۗ وَالَّذِيْنَ قُتِلُوْا فِيْ سَبِيْلِ اللّٰهِ فَلَنْ يُّضِلَّ اَعْمَالَهُمْ ( محمد: ٤ )
Faitha laqeetumu allatheena kafaroo fadarba alrriqabi hatta itha athkhantumoohum fashuddoo alwathaqa faimma mannan ba'du waimma fidaan hatta tada'a alharbu awzaraha thalika walaw yashao Allahu laintasara minhum walakin liyabluwa ba'dakum biba'din waallatheena qutiloo fee sabeeli Allahi falan yudilla a'malahum (Muḥammad 47:4)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अतः जब इनकार करनेवालो से तुम्हारी मुठभेड़ हो तो (उनकी) गरदनें मारना है, यहाँ तक कि जब उन्हें अच्छी तरह कुचल दो तो बन्धनों में जकड़ो, फिर बाद में या तो एहसान करो या फ़िदया (अर्थ-दंड) का मामला करो, यहाँ तक कि युद्ध अपने बोझ उतारकर रख दे। यह भली-भाँति समझ लो, यदि अल्लाह चाहे तो स्वयं उनसे निपट ले। किन्तु (उसने या आदेश इसलिए दिया) ताकि तुम्हारी एक-दूसरे की परीक्षा ले। और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते है उनके कर्म वह कदापि अकारथ न करेगा
English Sahih:
So when you meet those who disbelieve [in battle], strike [their] necks until, when you have inflicted slaughter upon them, then secure [their] bonds, and either [confer] favor afterwards or ransom [them] until the war lays down its burdens. That [is the command]. And if Allah had willed, He could have taken vengeance upon them [Himself], but [He ordered armed struggle] to test some of you by means of others. And those who are killed in the cause of Allah – never will He waste their deeds. ([47] Muhammad : 4)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
तो जब तुम काफिरों से भिड़ो तो (उनकी) गर्दनें मारो यहाँ तक कि जब तुम उन्हें ज़ख्मों से चूर कर डालो तो उनकी मुश्कें कस लो फिर उसके बाद या तो एहसान रख (कर छोड़ दे) या मुआवेज़ा लेकर, यहाँ तक कि (दुशमन) लड़ाई के हथियार रख दे तो (याद रखो) अगर ख़ुदा चाहता तो (और तरह) उनसे बदला लेता मगर उसने चाहा कि तुम्हारी आज़माइश एक दूसरे से (लड़वा कर) करे और जो लोग ख़ुदा की राह में यहीद किये गए उनकी कारगुज़ारियों को ख़ुदा हरगिज़ अकारत न करेगा