فَاِنْ اَعْرَضُوْا فَمَآ اَرْسَلْنٰكَ عَلَيْهِمْ حَفِيْظًا ۗاِنْ عَلَيْكَ اِلَّا الْبَلٰغُ ۗوَاِنَّآ اِذَآ اَذَقْنَا الْاِنْسَانَ مِنَّا رَحْمَةً فَرِحَ بِهَا ۚوَاِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ ۢبِمَا قَدَّمَتْ اَيْدِيْهِمْ فَاِنَّ الْاِنْسَانَ كَفُوْرٌ ( الشورى: ٤٨ )
Fain a'radoo fama arsalnaka 'alayhim hafeethan in 'alayka illa albalaghu wainna itha athaqna alinsana minna rahmatan fariha biha wain tusibhum sayyiatun bima qaddamat aydeehim fainna alinsana kafoorun (aš-Šūrā 42:48)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
अब यदि वे ध्यान में न लाएँ तो हमने तो तुम्हें उनपर कोई रक्षक बनाकर तो भेजा नहीं है। तुमपर तो केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। हाल यह है कि जब हम मनुष्य को अपनी ओर से किसी दयालुता का आस्वादन कराते है तो वह उसपर इतराने लगता है, किन्तु ऐसे लोगों के हाथों ने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण यदि उन्हें कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो निश्चय ही वही मनुष्य बड़ा कृतघ्न बन जाता है
English Sahih:
But if they turn away – then We have not sent you, [O Muhammad], over them as a guardian; upon you is only [the duty of] notification. And indeed, when We let man taste mercy from Us, he rejoices in it; but if evil afflicts him for what his hands have put forth, then indeed, man is ungrateful. ([42] Ash-Shuraa : 48)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा तुम्हारा काम तो सिर्फ (एहकाम का) पहुँचा देना है और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ पहुँचती (सब एहसान भूल गए) बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है