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مَنْ كَانَ يُرِيْدُ حَرْثَ الْاٰخِرَةِ نَزِدْ لَهٗ فِيْ حَرْثِهٖۚ وَمَنْ كَانَ يُرِيْدُ حَرْثَ الدُّنْيَا نُؤْتِهٖ مِنْهَاۙ وَمَا لَهٗ فِى الْاٰخِرَةِ مِنْ نَّصِيْبٍ   ( الشورى: ٢٠ )

Whoever
مَن
जो कोई
is
كَانَ
है
desiring
يُرِيدُ
चाहता
(the) harvest
حَرْثَ
खेती
(of) the Hereafter -
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत की
We increase
نَزِدْ
हम ज़्यादा कर देंगे
for him
لَهُۥ
उसके लिए
in
فِى
उसकी खेती में
his harvest
حَرْثِهِۦۖ
उसकी खेती में
And whoever
وَمَن
और जो कोई
is
كَانَ
है
desiring
يُرِيدُ
चाहता
(the) harvest
حَرْثَ
खेती
(of) the world
ٱلدُّنْيَا
दुनिया की
We give him
نُؤْتِهِۦ
हम देते हैं उसे
of it
مِنْهَا
उसमें से
but not
وَمَا
और नहीं होगा
for him
لَهُۥ
उसके लिए
in
فِى
आख़िरत में
the Hereafter
ٱلْءَاخِرَةِ
आख़िरत में
any
مِن
कोई हिस्सा
share
نَّصِيبٍ
कोई हिस्सा

Man kana yureedu hartha alakhirati nazid lahu fee harthihi waman kana yureedu hartha alddunya nutihi minha wama lahu fee alakhirati min naseebin (aš-Šūrā 42:20)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

जो कोई आख़िरत की खेती चाहता है, हम उसके लिए उसकी खेती में बढ़ोत्तरी प्रदान करेंगे और जो कोई दुनिया की खेती चाहता है, हम उसमें से उसे कुछ दे देते है, किन्तु आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं

English Sahih:

Whoever desires the harvest of the Hereafter – We increase for him in his harvest [i.e., reward]. And whoever desires the harvest [i.e., benefits] of this world – We give him thereof, but there is not for him in the Hereafter any share. ([42] Ash-Shuraa : 20)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

जो शख़्श आखेरत की खेती का तालिब हो हम उसके लिए उसकी खेती में अफ़ज़ाइश करेंगे और दुनिया की खेती का ख़ास्तगार हो तो हम उसको उसी में से देंगे मगर आखेरत में फिर उसका कुछ हिस्सा न होगा