وَمَا تَفَرَّقُوْٓا اِلَّا مِنْۢ بَعْدِ مَا جَاۤءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًاۢ بَيْنَهُمْۗ وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَّبِّكَ اِلٰٓى اَجَلٍ مُّسَمًّى لَّقُضِيَ بَيْنَهُمْۗ وَاِنَّ الَّذِيْنَ اُوْرِثُوا الْكِتٰبَ مِنْۢ بَعْدِهِمْ لَفِيْ شَكٍّ مِّنْهُ مُرِيْبٍ ( الشورى: ١٤ )
Wama tafarraqoo illa min ba'di ma jaahumu al'ilmu baghyan baynahum walawla kalimatun sabaqat min rabbika ila ajalin musamman laqudiya baynahum wainna allatheena oorithoo alkitaba min ba'dihim lafee shakkin minhu mureebin (aš-Šūrā 42:14)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
उन्होंने तो परस्पर एक-दूसरे पर ज़्यादती करने के उद्देश्य से इसके पश्चात विभेद किया कि उनके पास ज्ञान आ चुका था। और यदि तुम्हारे रब की ओर से एक नियत अवधि तक के लिए बात पहले निश्चित न हो चुकी होती तो उनके बीच फ़ैसला चुका दिया गया होता। किन्तु जो लोग उनके पश्चात किताब के वारिस हुए वे उसकी ओर से एक उलझन में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए है
English Sahih:
And they did not become divided until after knowledge had come to them – out of jealous animosity between themselves. And if not for a word that preceded from your Lord [postponing the penalty] until a specified time, it would have been concluded between them. And indeed, those who were granted inheritance of the Scripture after them are, concerning it, in disquieting doubt. ([42] Ash-Shuraa : 14)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और ये लोग मुतफ़र्रिक़ हुए भी तो इल्म (हक़) आ चुकने के बाद और (वह भी) महज़ आपस की ज़िद से और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक वक्ते मुक़र्रर तक के लिए (क़यामत का) वायदा न हो चुका होता तो उनमें कबका फैसला हो चुका होता और जो लोग उनके बाद (ख़ुदा की) किताब के वारिस हुए वह उसकी तरफ से बहुत सख्त शुबहे में (पड़े हुए) हैं