وَلَىِٕنْ اَذَقْنٰهُ رَحْمَةً مِّنَّا مِنْۢ بَعْدِ ضَرَّاۤءَ مَسَّتْهُ لَيَقُوْلَنَّ هٰذَا لِيْۙ وَمَآ اَظُنُّ السَّاعَةَ قَاۤىِٕمَةًۙ وَّلَىِٕنْ رُّجِعْتُ اِلٰى رَبِّيْٓ اِنَّ لِيْ عِنْدَهٗ لَلْحُسْنٰىۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا بِمَا عَمِلُوْاۖ وَلَنُذِيْقَنَّهُمْ مِّنْ عَذَابٍ غَلِيْظٍ ( فصلت: ٥٠ )
Walain athaqnahu rahmatan minna min ba'di darraa massathu layaqoolanna hatha lee wama athunnu alssa'ata qaimatan walain ruji'tu ila rabbee inna lee 'indahu lalhusna falanunabbianna allatheena kafaroo bima 'amiloo walanutheeqannahum min 'athabin ghaleethin (Fuṣṣilat 41:50)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और यदि उस तकलीफ़ के बाद, जो उसे पहुँची, हम उसे अपनी दयालुता का आस्वादन करा दें तो वह निश्चय ही कहेंगा, 'यह तो मेरा हक़ ही है। मैं तो यह नहीं समझता कि वह, क़ियामत की घड़ी, घटित होगी और यदि मैं अपने रब की ओर लौटाया भी गया तो अवश्य ही उसके पास मेरे लिए अच्छा पारितोषिक होगा।' फिर हम उन लोगों को जिन्होंने इनकार किया, अवश्य बताकर रहेंगे, जो कुछ उन्होंने किया होगा। और हम उन्हें अवश्य ही कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे
English Sahih:
And if We let him taste mercy from Us after an adversity which has touched him, he will surely say, "This is [due] to me, and I do not think the Hour will occur; and [even] if I should be returned to my Lord, indeed, for me there will be with Him the best." But We will surely inform those who disbelieved about what they did, and We will surely make them taste a massive punishment. ([41] Fussilat : 50)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें