تَدْعُوْنَنِيْ لِاَكْفُرَ بِاللّٰهِ وَاُشْرِكَ بِهٖ مَا لَيْسَ لِيْ بِهٖ عِلْمٌ وَّاَنَا۠ اَدْعُوْكُمْ اِلَى الْعَزِيْزِ الْغَفَّارِ ( غافر: ٤٢ )
You call me
تَدْعُونَنِى
तुम बुलाते हो मुझे
that I disbelieve
لِأَكْفُرَ
कि मैं कुफ़्र करूँ
in Allah
بِٱللَّهِ
साथ अल्लाह के
and (to) associate
وَأُشْرِكَ
और मैं शरीक ठहराऊँ
with Him
بِهِۦ
साथ उसके
what
مَا
उसको जो
not
لَيْسَ
नहीं है
for me
لِى
मुझे
of it
بِهِۦ
उसका
any knowledge
عِلْمٌ
कोई इल्म
and I
وَأَنَا۠
और मैं
call you
أَدْعُوكُمْ
मैं बुलाता हूँ तुम्हें
to
إِلَى
तरफ़
the All-Mighty
ٱلْعَزِيزِ
बहुत ज़बरदस्त के
the Oft-Forgiving
ٱلْغَفَّٰرِ
बहुत बख़्शने वाले के
Tad'oonanee liakfura biAllahi waoshrika bihi ma laysa lee bihi 'ilmun waana ad'ookum ila al'azeezi alghaffari (Ghāfir 40:42)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
तुम मुझे बुला रहे हो कि मैं अल्लाह के साथ कुफ़्र करूँ और उसके साथ उसे साझी ठहराऊँ जिसका मुझे कोई ज्ञान नहीं, जबकि मैं तुम्हें बुला रहा हूँ उसकी ओर जो प्रभुत्वशाली, अत्यन्त क्षमाशील है
English Sahih:
You invite me to disbelieve in Allah and associate with Him that of which I have no knowledge, and I invite you to the Exalted in Might, the Perpetual Forgiver. ([40] Ghafir : 42)