اِنَّ الَّذِيْنَ تَوَفّٰىهُمُ الْمَلٰۤىِٕكَةُ ظَالِمِيْٓ اَنْفُسِهِمْ قَالُوْا فِيْمَ كُنْتُمْ ۗ قَالُوْا كُنَّا مُسْتَضْعَفِيْنَ فِى الْاَرْضِۗ قَالُوْٓا اَلَمْ تَكُنْ اَرْضُ اللّٰهِ وَاسِعَةً فَتُهَاجِرُوْا فِيْهَا ۗ فَاُولٰۤىِٕكَ مَأْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ۗ وَسَاۤءَتْ مَصِيْرًاۙ ( النساء: ٩٧ )
Inna allatheena tawaffahumu almalaikatu thalimee anfusihim qaloo feema kuntum qaloo kunna mustad'afeena fee alardi qaloo alam takun ardu Allahi wasi'atan fatuhajiroo feeha faolaika mawahum jahannamu wasaat maseeran (an-Nisāʾ 4:97)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
जो लोग अपने-आप पर अत्याचार करते है, जब फ़रिश्ते उस दशा में उनके प्राण ग्रस्त कर लेते है, तो कहते है, 'तुम किस दशा में पड़े रहे?' वे कहते है, 'हम धरती में निर्बल और बेबस थे।' फ़रिश्ते कहते है, 'क्या अल्लाह की धरती विस्तृत न थी कि तुम उसमें घर-बार छोड़कर कहीं ओर चले जाते?' तो ये वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है। - और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है
English Sahih:
Indeed, those whom the angels take [in death] while wronging themselves – [the angels] will say, "In what [condition] were you?" They will say, "We were oppressed in the land." They [the angels] will say, "Was not the earth of Allah spacious [enough] for you to emigrate therein?" For those, their refuge is Hell – and evil it is as a destination. ([4] An-Nisa : 97)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
बेशक जिन लोगों की क़ब्जे रूह फ़रिश्ते ने उस वक़त की है कि (दारूल हरब में पड़े) अपनी जानों पर ज़ुल्म कर रहे थे और फ़रिश्ते कब्जे रूह के बाद हैरत से कहते हैं तुम किस (हालत) ग़फ़लत में थे तो वह (माज़ेरत के लहजे में) कहते है कि हम तो रूए ज़मीन में बेकस थे तो फ़रिश्ते कहते हैं कि ख़ुदा की (ऐसी लम्बी चौड़ी) ज़मीन में इतनी सी गुन्जाइश न थी कि तुम (कहीं) हिजरत करके चले जाते पस ऐसे लोगों का ठिकाना जहन्नुम है और वह बुरा ठिकाना है