اَفَلَا يَتَدَبَّرُوْنَ الْقُرْاٰنَ ۗ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِنْدِ غَيْرِ اللّٰهِ لَوَجَدُوْا فِيْهِ اخْتِلَافًا كَثِيْرًا ( النساء: ٨٢ )
Then (do) not
أَفَلَا
क्या फिर नहीं
they ponder
يَتَدَبَّرُونَ
वो तदब्बुर करते
(on) the Quran?
ٱلْقُرْءَانَۚ
क़ुरआन में
And if
وَلَوْ
और अगर
it had (been)
كَانَ
होता वो
(of)
مِنْ
पास से
from
عِندِ
पास से
other than
غَيْرِ
ग़ैर
Allah
ٱللَّهِ
अल्लाह के
surely they (would have) found
لَوَجَدُوا۟
अलबत्ता वो पाते
in it
فِيهِ
उसमें
contradiction
ٱخْتِلَٰفًا
इख्तिलाफ़
much
كَثِيرًا
बहुत ज़्यादा
Afala yatadabbaroona alqurana walaw kana min 'indi ghayri Allahi lawajadoo feehi ikhtilafan katheeran (an-Nisāʾ 4:82)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
क्या वे क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करते? यदि यह अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर से होता, तो निश्चय ही वे इसमें बहुत-सी बेमेल बातें पाते
English Sahih:
Then do they not reflect upon the Quran? If it had been from [any] other than Allah, they would have found within it much contradiction. ([4] An-Nisa : 82)