وَابْتَلُوا الْيَتٰمٰى حَتّٰىٓ اِذَا بَلَغُوا النِّكَاحَۚ فَاِنْ اٰنَسْتُمْ مِّنْهُمْ رُشْدًا فَادْفَعُوْٓا اِلَيْهِمْ اَمْوَالَهُمْ ۚ وَلَا تَأْكُلُوْهَآ اِسْرَافًا وَّبِدَارًا اَنْ يَّكْبَرُوْا ۗ وَمَنْ كَانَ غَنِيًّا فَلْيَسْتَعْفِفْ ۚ وَمَنْ كَانَ فَقِيْرًا فَلْيَأْكُلْ بِالْمَعْرُوْفِ ۗ فَاِذَا دَفَعْتُمْ اِلَيْهِمْ اَمْوَالَهُمْ فَاَشْهِدُوْا عَلَيْهِمْ ۗ وَكَفٰى بِاللّٰهِ حَسِيْبًا ( النساء: ٦ )
Waibtaloo alyatama hatta itha balaghoo alnnikaha fain anastum minhum rushdan faidfa'oo ilayhim amwalahum wala takulooha israfan wabidaran an yakbaroo waman kana ghaniyyan falyasta'fif waman kana faqeeran falyakul bialma'roofi faitha dafa'tum ilayhim amwalahum faashhidoo 'alayhim wakafa biAllahi haseeban (an-Nisāʾ 4:6)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और अनाथों को जाँचते रहो, यहाँ तक कि जब वे विवाह की अवस्था को पहुँच जाएँ, तो फिर यदि तुम देखो कि उनमें सूझ-बूझ आ गई है, तो उनके माल उन्हें सौंप दो, और इस भय से कि कहीं वे बड़े न हो जाएँ तुम उनके माल अनुचित रूप से उड़ाकर और जल्दी करके न खाओ। और जो धनवान हो, उसे तो (इस माल से) से बचना ही चाहिए। हाँ, जो निर्धन हो, वह उचित रीति से कुछ खा सकता है। फिर जब उनके माल उन्हें सौंपने लगो, तो उनकी मौजूदगी में गवाह बना लो। हिसाब लेने के लिए अल्लाह काफ़ी है
English Sahih:
And test the orphans [in their abilities] until they reach marriageable age. Then if you perceive in them sound judgement, release their property to them. And do not consume it excessively and quickly, [anticipating] that they will grow up. And whoever, [when acting as guardian], is self-sufficient should refrain [from taking a fee]; and whoever is poor – let him take according to what is acceptable. Then when you release their property to them, bring witnesses upon them. And sufficient is Allah as Accountant. ([4] An-Nisa : 6)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और यतीमों को कारोबार में लगाए रहो यहॉ तक के ब्याहने के क़ाबिल हों फिर उस वक्त तुम उन्हे (एक महीने का ख़र्च) उनके हाथ से कराके अगर होशियार पाओ तो उनका माल उनके हवाले कर दो और (ख़बरदार) ऐसा न करना कि इस ख़ौफ़ से कि कहीं ये बड़े हो जाएंगे फ़ुज़ूल ख़र्ची करके झटपट उनका माल चट कर जाओ और जो (जो वली या सरपरस्त) दौलतमन्द हो तो वह (माले यतीम अपने ख़र्च में लाने से) बचता रहे और (हॉ) जो मोहताज हो वह अलबत्ता (वाजिबी) दस्तूर के मुताबिक़ खा सकता है पस जब उनके माल उनके हवाले करने लगो तो लोगों को उनका गवाह बना लो और (यूं तो) हिसाब लेने को ख़ुदा काफ़ी ही है