وَاِنْ خِفْتُمْ اَلَّا تُقْسِطُوْا فِى الْيَتٰمٰى فَانْكِحُوْا مَا طَابَ لَكُمْ مِّنَ النِّسَاۤءِ مَثْنٰى وَثُلٰثَ وَرُبٰعَ ۚ فَاِنْ خِفْتُمْ اَلَّا تَعْدِلُوْا فَوَاحِدَةً اَوْ مَا مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ ۗ ذٰلِكَ اَدْنٰٓى اَلَّا تَعُوْلُوْاۗ ( النساء: ٣ )
Wain khiftum alla tuqsitoo fee alyatama fainkihoo ma taba lakum mina alnnisai mathna wathulatha waruba'a fain khiftum alla ta'diloo fawahidatan aw ma malakat aymanukum thalika adna alla ta'ooloo (an-Nisāʾ 4:3)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथों (अनाथ लड़कियों) के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पसन्द हों, दो-दो या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो। किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार न कर सकोंगे, तो फिर एक ही पर बस करो, या उस स्त्री (लौंड़ी) पर जो तुम्हारे क़ब्ज़े में आई हो, उसी पर बस करो। इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक सम्भावना है
English Sahih:
And if you fear that you will not deal justly with the orphan girls, then marry those that please you of [other] women, two or three or four. But if you fear that you will not be just, then [marry only] one or those your right hands possess [i.e., slaves]. That is more suitable that you may not incline [to injustice]. ([4] An-Nisa : 3)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और अगर तुमको अन्देशा हो कि (निकाह करके) तुम यतीम लड़कियों (की रखरखाव) में इन्साफ न कर सकोगे तो और औरतों में अपनी मर्ज़ी के मवाफ़िक दो दो और तीन तीन और चार चार निकाह करो (फिर अगर तुम्हें इसका) अन्देशा हो कि (मुततइद) बीवियों में (भी) इन्साफ न कर सकोगे तो एक ही पर इक्तेफ़ा करो या जो (लोंडी) तुम्हारी ज़र ख़रीद हो (उसी पर क़नाअत करो) ये तदबीर बेइन्साफ़ी न करने की बहुत क़रीने क़यास है