۞ وَالْمُحْصَنٰتُ مِنَ النِّسَاۤءِ اِلَّا مَا مَلَكَتْ اَيْمَانُكُمْ ۚ كِتٰبَ اللّٰهِ عَلَيْكُمْ ۚ وَاُحِلَّ لَكُمْ مَّا وَرَاۤءَ ذٰلِكُمْ اَنْ تَبْتَغُوْا بِاَمْوَالِكُمْ مُّحْصِنِيْنَ غَيْرَ مُسَافِحِيْنَ ۗ فَمَا اسْتَمْتَعْتُمْ بِهٖ مِنْهُنَّ فَاٰتُوْهُنَّ اُجُوْرَهُنَّ فَرِيْضَةً ۗوَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيْمَا تَرَاضَيْتُمْ بِهٖ مِنْۢ بَعْدِ الْفَرِيْضَةِۗ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِيْمًا حَكِيْمًا ( النساء: ٢٤ )
Waalmuhsanatu mina alnnisai illa ma malakat aymanukum kitaba Allahi 'alaykum waohilla lakum ma waraa thalikum an tabtaghoo biamwalikum muhsineena ghayra musafiheena fama istamta'tum bihi minhunna faatoohunna ojoorahunna fareedatan wala junaha 'alaykum feema taradaytum bihi min ba'di alfareedati inna Allaha kana 'aleeman hakeeman (an-Nisāʾ 4:24)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और विवाहित स्त्रियाँ भी वर्जित है, सिवाय उनके जो तुम्हारी लौंडी हों। यह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनिवार्य कर दिया है। इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है कि तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनकी पाकदामनी की सुरक्षा के लिए, न कि यह काम स्वच्छन्द काम-तृप्ति के लिए हो। फिर उनसे दाम्पत्य जीवन का आनन्द लो तो उसके बदले उनका निश्चित किया हुए हक़ (मह्रि) अदा करो और यदि हक़ निश्चित हो जाने के पश्चात तुम आपम में अपनी प्रसन्नता से कोई समझौता कर लो, तो इसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
English Sahih:
And [also prohibited to you are all] married women except those your right hands possess. [This is] the decree of Allah upon you. And lawful to you are [all others] beyond these, [provided] that you seek them [in marriage] with [gifts from] your property, desiring chastity, not unlawful sexual intercourse. So for whatever you enjoy [of marriage] from them, give them their due compensation as an obligation. And there is no blame upon you for what you mutually agree to beyond the obligation. Indeed, Allah is ever Knowing and Wise. ([4] An-Nisa : 24)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और शौहरदार औरतें मगर वह औरतें जो (जिहाद में कुफ्फ़ार से) तुम्हारे कब्ज़े में आ जाएं हराम नहीं (ये) ख़ुदा का तहरीरी हुक्म (है जो) तुमपर (फ़र्ज़ किया गया) है और उन औरतों के सिवा (और औरतें) तुम्हारे लिए जायज़ हैं बशर्ते कि बदकारी व ज़िना नहीं बल्कि तुम इफ्फ़त या पाकदामिनी की ग़रज़ से अपने माल (व मेहर) के बदले (निकाह करना) चाहो हॉ जिन औरतों से तुमने मुताअ किया हो तो उन्हें जो मेहर मुअय्यन किया है दे दो और मेहर के मुक़र्रर होने के बाद अगर आपस में (कम व बेश पर) राज़ी हो जाओ तो उसमें तुमपर कुछ गुनाह नहीं है बेशक ख़ुदा (हर चीज़ से) वाक़िफ़ और मसलेहतों का पहचानने वाला है