وَاٰتُوا الْيَتٰمٰىٓ اَمْوَالَهُمْ وَلَا تَتَبَدَّلُوا الْخَبِيْثَ بِالطَّيِّبِ ۖ وَلَا تَأْكُلُوْٓا اَمْوَالَهُمْ اِلٰٓى اَمْوَالِكُمْ ۗ اِنَّهٗ كَانَ حُوْبًا كَبِيْرًا ( النساء: ٢ )
And give
وَءَاتُوا۟
और दो
(to) the orphans
ٱلْيَتَٰمَىٰٓ
यतीमों को
their wealth
أَمْوَٰلَهُمْۖ
माल उनके
and (do) not
وَلَا
और ना
exchange
تَتَبَدَّلُوا۟
तुम तब्दील करो
the bad
ٱلْخَبِيثَ
नापाक को
with the good
بِٱلطَّيِّبِۖ
पाक से
and (do) not
وَلَا
और ना
consume
تَأْكُلُوٓا۟
तुम खाओ
their wealth
أَمْوَٰلَهُمْ
माल उनके
with
إِلَىٰٓ
तरफ़
your wealth
أَمْوَٰلِكُمْۚ
अपने मालों के (मिला कर)
Indeed it
إِنَّهُۥ
यक़ीनन वो
is
كَانَ
है वो
a sin
حُوبًا
गुनाह
great
كَبِيرًا
बहुत बड़ा
Waatoo alyatama amwalahum wala tatabaddaloo alkhabeetha bialttayyibi wala takuloo amwalahum ila amwalikum innahu kana hooban kabeeran (an-Nisāʾ 4:2)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और अनाथों को उनका माल दे दो और बुरी चीज़ को अच्छी चीज़ से न बदलो, और न उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर खा जाओ। यह बहुत बड़ा गुनाह हैं
English Sahih:
And give to the orphans their properties and do not substitute the defective [of your own] for the good [of theirs]. And do not consume their properties into your own. Indeed, that is ever a great sin. ([4] An-Nisa : 2)