وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ الطُّوْرَ بِمِيْثَاقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَّقُلْنَا لَهُمْ لَا تَعْدُوْا فِى السَّبْتِ وَاَخَذْنَا مِنْهُمْ مِّيْثَاقًا غَلِيْظًا ( النساء: ١٥٤ )
Warafa'na fawqahumu alttoora bimeethaqihim waqulna lahumu odkhuloo albaba sujjadan waqulna lahum la ta'doo fee alssabti waakhathna minhum meethaqan ghaleethan (an-Nisāʾ 4:154)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और उन लोगों से वचन लेने के साथ (तूर) पहाड़ को उनपर उठा दिया और उनसे कहा, 'दरवाज़े में सजदा करते हुए प्रवेश करो।' और उनसे कहा, 'सब्त (सामूहिक इबादत का दिन) के विषय में ज़्यादती न करना।' और हमने उनसे बहुत-ही दृढ़ वचन लिया था
English Sahih:
And We raised over them the mount for [refusal of] their covenant; and We said to them, "Enter the gate bowing humbly"; and We said to them, "Do not transgress on the sabbath"; and We took from them a solemn covenant. ([4] An-Nisa : 154)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और हमने उनके एहद व पैमान की वजह से उनके (सर) पर (कोहे) तूर को लटका दिया और हमने उनसे कहा कि (शहर के) दरवाज़े में सजदा करते हुए दाख़िल हो और हमने (ये भी) कहा कि तुम हफ्ते के दिन (हमारे हुक्म से) तजावुज़ न करना और हमने उनसे बहुत मज़बूत एहदो पैमान ले लिया