وَاِنِ امْرَاَةٌ خَافَتْ مِنْۢ بَعْلِهَا نُشُوْزًا اَوْ اِعْرَاضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَآ اَنْ يُّصْلِحَا بَيْنَهُمَا صُلْحًا ۗوَالصُّلْحُ خَيْرٌ ۗوَاُحْضِرَتِ الْاَنْفُسُ الشُّحَّۗ وَاِنْ تُحْسِنُوْا وَتَتَّقُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِيْرًا ( النساء: ١٢٨ )
Waini imraatun khafat min ba'liha nushoozan aw i'radan fala junaha 'alayhima an yusliha baynahuma sulhan waalssulhu khayrun waohdirati alanfusu alshshuhha wain tuhsinoo watattaqoo fainna Allaha kana bima ta'maloona khabeeran (an-Nisāʾ 4:128)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यदि किसी स्त्री को अपने पति की और से दुर्व्यवहार या बेरुख़ी का भय हो, तो इसमें उनके लिए कोई दोष नहीं कि वे दोनों आपस में मेल-मिलाप की कोई राह निकाल ले। और मेल-मिलाव अच्छी चीज़ है। और मन तो लोभ एवं कृपणता के लिए उद्यत रहता है। परन्तु यदि तुम अच्छा व्यवहार करो और (अल्लाह का) भय रखो, तो अल्लाह को निश्चय ही जो कुछ तुम करोगे उसकी खबर रहेगी
English Sahih:
And if a woman fears from her husband contempt or evasion, there is no sin upon them if they make terms of settlement between them – and settlement is best. And present in [human] souls is stinginess. But if you do good and fear Allah – then indeed Allah is ever, of what you do, Aware. ([4] An-Nisa : 128)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और अगर कोई औरत अपने शौहर की ज्यादती व बेतवज्जोही से (तलाक़ का) ख़ौफ़ रखती हो तो मियॉ बीवी के बाहम किसी तरह मिलाप कर लेने में दोनों (में से किसी पर) कुछ गुनाह नहीं है और सुलह तो (बहरहाल) बेहतर है और बुख्ल से तो क़रीब क़रीब हर तबियत के हम पहलू है और अगर तुम नेकी करो और परहेजदारी करो तो ख़ुदा तुम्हारे हर काम से ख़बरदार है (वही तुमको अज्र देगा)