وَاِذَا كُنْتَ فِيْهِمْ فَاَقَمْتَ لَهُمُ الصَّلٰوةَ فَلْتَقُمْ طَاۤىِٕفَةٌ مِّنْهُمْ مَّعَكَ وَلْيَأْخُذُوْٓا اَسْلِحَتَهُمْ ۗ فَاِذَا سَجَدُوْا فَلْيَكُوْنُوْا مِنْ وَّرَاۤىِٕكُمْۖ وَلْتَأْتِ طَاۤىِٕفَةٌ اُخْرٰى لَمْ يُصَلُّوْا فَلْيُصَلُّوْا مَعَكَ وَلْيَأْخُذُوْا حِذْرَهُمْ وَاَسْلِحَتَهُمْ ۗ وَدَّ الَّذِيْنَ كَفَرُوْا لَوْ تَغْفُلُوْنَ عَنْ اَسْلِحَتِكُمْ وَاَمْتِعَتِكُمْ فَيَمِيْلُوْنَ عَلَيْكُمْ مَّيْلَةً وَّاحِدَةً ۗوَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ اِنْ كَانَ بِكُمْ اَذًى مِّنْ مَّطَرٍ اَوْ كُنْتُمْ مَّرْضٰٓى اَنْ تَضَعُوْٓا اَسْلِحَتَكُمْ وَخُذُوْا حِذْرَكُمْ ۗ اِنَّ اللّٰهَ اَعَدَّ لِلْكٰفِرِيْنَ عَذَابًا مُّهِيْنًا ( النساء: ١٠٢ )
Waitha kunta feehim faaqamta lahumu alssalata faltaqum taifatun minhum ma'aka walyakhuthoo aslihatahum faitha sajadoo falyakoonoo min waraikum waltati taifatun okhra lam yusalloo falyusalloo ma'aka walyakhuthoo hithrahum waaslihatahum wadda allatheena kafaroo law taghfuloona 'an aslihatikum waamti'atikum fayameeloona 'alaykum maylatan wahidatan wala junaha 'alaykum in kana bikum athan min matarin aw kuntum marda an tada'oo aslihatakum wakhuthoo hithrakum inna Allaha a'adda lilkafireena 'athaban muheenan (an-Nisāʾ 4:102)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
और जब तुम उनके बीच हो और (लड़ाई की दशा में) उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो, जो चाहिए कि उनमें से एक गिरोह के लोग तुम्हारे साथ खड़े हो जाएँ और अपने हथियार साथ लिए रहें, और फिर जब वे सजदा कर लें तो उन्हें चाहिए कि वे हटकर तुम्हारे पीछे हो जाएँ और दूसरे गिरोंह के लोग, जिन्होंने अभी नमाज़ नही पढ़ी, आएँ और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और उन्हें भी चाहिए कि वे भी अपने बचाव के सामान और हथियार लिए रहें। विधर्मी चाहते ही है कि वे भी अपने हथियारों और सामान से असावधान हो जाओ तो वे तुम पर एक साथ टूट पड़े। यदि वर्षा के कारण तुम्हें तकलीफ़ होती हो या तुम बीमार हो, तो तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने हथियार रख दो, फिर भी अपनी सुरक्षा का सामान लिए रहो। अल्लाह ने विधर्मियों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है
English Sahih:
And when you [i.e., the commander of an army] are among them and lead them in prayer, let a group of them stand [in prayer] with you and let them carry their arms. And when they have prostrated, let them be [in position] behind you and have the other group come forward which has not [yet] prayed and let them pray with you, taking precaution and carrying their arms. Those who disbelieve wish that you would neglect your weapons and your baggage so they could come down upon you in one [single] attack. But there is no blame upon you, if you are troubled by rain or are ill, for putting down your arms, but take precaution. Indeed, Allah has prepared for the disbelievers a humiliating punishment. ([4] An-Nisa : 102)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
और (ऐ रसूल) तुम मुसलमानों में मौजूद हो और (लड़ाई हो रही हो) कि तुम उनको नमाज़ पढ़ाने लगो तो (दो गिरोह करके) एक को लड़ाई के वास्ते छोड़ दो (और) उनमें से एक जमाअत तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपने हरबे तैयार अपने साथ लिए रहे फिर जब (पहली रकअत के) सजदे कर (दूसरी रकअत फुरादा पढ़) ले तो तुम्हारे पीछे पुश्त पनाह बनें और दूसरी जमाअत जो (लड़ रही थी और) जब तक नमाज़ नहीं पढ़ने पायी है और (तुम्हारी दूसरी रकअत में) तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े और अपनी हिफ़ाज़त की चीजे अौर अपने हथियार (नमाज़ में साथ) लिए रहे कुफ्फ़ार तो ये चाहते ही हैं कि काश अपने हथियारों और अपने साज़ व सामान से ज़रा भी ग़फ़लत करो तो एक बारगी सबके सब तुम पर टूट पड़ें हॉ अलबत्ता उसमें कुछ मुज़ाएक़ा नहीं कि (इत्तेफ़ाक़न) तुमको बारिश के सबब से कुछ तकलीफ़ पहुंचे या तुम बीमार हो तो अपने हथियार (नमाज़ में) उतार के रख दो और अपनी हिफ़ाज़त करते रहो और ख़ुदा ने तो काफ़िरों के लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है