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فَاِذَا مَسَّ الْاِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَانَاۖ ثُمَّ اِذَا خَوَّلْنٰهُ نِعْمَةً مِّنَّاۙ قَالَ اِنَّمَآ اُوْتِيْتُهٗ عَلٰى عِلْمٍ ۗبَلْ هِيَ فِتْنَةٌ وَّلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُوْنَ  ( الزمر: ٤٩ )

So when
فَإِذَا
फिर जब
touches
مَسَّ
पहुँचता है
[the] man
ٱلْإِنسَٰنَ
इन्सान को
adversity
ضُرٌّ
कोई नुक़्सान
he calls upon Us;
دَعَانَا
वो पुकारता है हमें
then
ثُمَّ
फिर
when
إِذَا
जब
We bestow (on) him
خَوَّلْنَٰهُ
हम अता करते हैं उसे
a favor
نِعْمَةً
कोई नेअमत
from Us
مِّنَّا
अपने पास से
he says
قَالَ
वो कहता है
"Only
إِنَّمَآ
बेशक
I have been given it
أُوتِيتُهُۥ
दिया गया हूँ मैं उसे
for
عَلَىٰ
इल्म की बिना पर
knowledge"
عِلْمٍۭۚ
इल्म की बिना पर
Nay
بَلْ
बल्कि
it
هِىَ
वो
(is) a trial
فِتْنَةٌ
एक फ़ितना है
but
وَلَٰكِنَّ
और लेकिन
most of them
أَكْثَرَهُمْ
अक्सर उनके
(do) not
لَا
नहीं वो इल्म रखते
know
يَعْلَمُونَ
नहीं वो इल्म रखते

Faitha massa alinsana durrun da'ana thumma itha khawwalnahu ni'matan minna qala innama ooteetuhu 'ala 'ilmin bal hiya fitnatun walakinna aktharahum la ya'lamoona (az-Zumar 39:49)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

अतः जब मनुष्य को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो वह हमें पुकारने लगता है, फिर जब हमारी ओर से उसपर कोई अनुकम्पा होती है तो कहता है, 'यह तो मुझे ज्ञान के कारण प्राप्त हुआ।' नहीं, बल्कि यह तो एक परीक्षा है, किन्तु उनमें से अधिकतर जानते नहीं

English Sahih:

And when adversity touches man, he calls upon Us; then when We bestow on him a favor from Us, he says, "I have only been given it because of [my] knowledge." Rather, it is a trial, but most of them do not know. ([39] Az-Zumar : 49)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

इन्सान को तो जब कोई बुराई छू गयी बस वह लगा हमसे दुआएँ माँगने, फिर जब हम उसे अपनी तरफ़ से कोई नेअमत अता करते हैं तो कहने लगता है कि ये तो सिर्फ (मेरे) इल्म के ज़ोर से मुझे दिया गया है (ये ग़लती है) बल्कि ये तो एक आज़माइश है मगर उन में के अक्सर नहीं जानते हैं