اِنْ تَدْعُوْهُمْ لَا يَسْمَعُوْا دُعَاۤءَكُمْۚ وَلَوْ سَمِعُوْا مَا اسْتَجَابُوْا لَكُمْۗ وَيَوْمَ الْقِيٰمَةِ يَكْفُرُوْنَ بِشِرْكِكُمْۗ وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيْرٍ ࣖ ( فاطر: ١٤ )
In tad'oohum la yasma'oo du'aakum walaw sami'oo ma istajaboo lakum wayawma alqiyamati yakfuroona bishirkikum wala yunabbioka mithlu khabeerin (Fāṭir 35:14)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
यदि तुम उन्हें पुकारो तो वे तुम्हारी पुकार सुनेगे नहीं। और यदि वे सुनते तो भी तुम्हारी याचना स्वीकार न कर सकते और क़ियामत के दिन वे तुम्हारे साझी ठहराने का इनकार कर देंगे। पूरी ख़बर रखनेवाला (अल्लाह) की तरह तुम्हें कोई न बताएगा
English Sahih:
If you invoke them, they do not hear your supplication; and if they heard, they would not respond to you. And on the Day of Resurrection they will deny your association. And none can inform you like [one] Aware [of all matters]. ([35] Fatir : 14)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
अगर तुम उनको पुकारो तो वह तुम्हारी पुकार को सुनते नहीं अगर (बिफ़रज़े मुहाल) सुनों भी तो तुम्हारी दुआएँ नहीं कुबूल कर सकते और क़यामत के दिन तुम्हारे शिर्क से इन्कार कर बैठेंगें और वाक़िफकार (शख्स की तरह कोई दूसरा उनकी पूरी हालत) तुम्हें बता नहीं सकता