وَمَا يَسْتَوِى الْبَحْرٰنِۖ هٰذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ سَاۤىِٕغٌ شَرَابُهٗ وَهٰذَا مِلْحٌ اُجَاجٌۗ وَمِنْ كُلٍّ تَأْكُلُوْنَ لَحْمًا طَرِيًّا وَّتَسْتَخْرِجُوْنَ حِلْيَةً تَلْبَسُوْنَهَا ۚوَتَرَى الْفُلْكَ فِيْهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ( فاطر: ١٢ )
Wama yastawee albahrani hatha 'athbun furatun saighun sharabuhu wahatha milhun ojajun wamin kullin takuloona lahman tariyyan watastakhrijoona hilyatan talbasoonaha watara alfulka feehi mawakhira litabtaghoo min fadlihi wala'allakum tashkuroona (Fāṭir 35:12)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
दोनों सागर समान नहीं, यह मीठा सुस्वाद है जिससे प्यास जाती रहे, पीने में रुचिकर। और यह खारा-कडुवा है। और तुम प्रत्येक में से तरोताज़ा माँस खाते हो और आभूषण निकालते हो, जिसे तुम पहनते हो। और तुम नौकाओं को देखते हो कि चीरती हुई उसमें चली जा रही हैं, ताकि तुम उसका उदार अनुग्रह तलाश करो और कदाचित तुम आभारी बनो
English Sahih:
And not alike are the two seas [i.e., bodies of water]. One is fresh and sweet, palatable for drinking, and one is salty and bitter. And from each you eat tender meat and extract ornaments which you wear, and you see the ships plowing through [them] that you might seek of His bounty; and perhaps you will be grateful. ([35] Fatir : 12)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
(उसकी कुदरत देखो) दो समन्दर बावजूद मिल जाने के यकसाँ नहीं हो जाते ये (एक तो) मीठा खुश ज़ाएका कि उसका पीना सुवारत (ख़ुश्गवार) है और ये (दूसरा) खारी कड़ुवा है और (इस इख़तेलाफ पर भी) तुम लोग दोनों से (मछली का) तरो ताज़ा गोश्त (यकसाँ) खाते हो और (अपने लिए ज़ेवरात (मोती वग़ैरह) निकालते हो जिन्हें तुम पहनते हो और तुम देखते हो कि कश्तियां दरिया में (पानी को) फाड़ती चली जाती हैं ताकि उसके फज्ल (व करम तिजारत) की तलाश करो और ताकि तुम लोग शुक्र करो