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اِنَّا عَرَضْنَا الْاَمَانَةَ عَلَى السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَالْجِبَالِ فَاَبَيْنَ اَنْ يَّحْمِلْنَهَا وَاَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْاِنْسَانُۗ اِنَّهٗ كَانَ ظَلُوْمًا جَهُوْلًاۙ   ( الأحزاب: ٧٢ )

Indeed We
إِنَّا
बेशक हम
[We] offered
عَرَضْنَا
पेश किया हमने
the Trust
ٱلْأَمَانَةَ
अमानत को
to
عَلَى
आसमानों पर
the heavens
ٱلسَّمَٰوَٰتِ
आसमानों पर
and the earth
وَٱلْأَرْضِ
और ज़मीन पर
and the mountains
وَٱلْجِبَالِ
और पहाड़ों पर
but they refused
فَأَبَيْنَ
तो उन्होंने इन्कार कर दिया
to
أَن
कि
bear it
يَحْمِلْنَهَا
वो उठाऐं उसे
and they feared
وَأَشْفَقْنَ
और वो डर गए
from it;
مِنْهَا
उससे
but bore it
وَحَمَلَهَا
और उठा लिया उसे
the man
ٱلْإِنسَٰنُۖ
इन्सान ने
Indeed he
إِنَّهُۥ
बेशक वो
was
كَانَ
है
very unjust
ظَلُومًا
बहुत ज़ालिम
very ignorant
جَهُولًا
बहुत जाहिल

Inna 'aradna alamanata 'ala alssamawati waalardi waaljibali faabayna an yahmilnaha waashfaqna minha wahamalaha alinsanu innahu kana thalooman jahoolan (al-ʾAḥzāb 33:72)

Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:

हमने अमानत को आकाशों और धरती और पर्वतों के समक्ष प्रस्तुत किया, किन्तु उन्होंने उसके उठाने से इनकार कर दिया और उससे डर गए। लेकिन मनुष्य ने उसे उठा लिया। निश्चय ही वह बड़ी ज़ालिम, आवेश के वशीभूत हो जानेवाला है

English Sahih:

Indeed, We offered the Trust to the heavens and the earth and the mountains, and they declined to bear it and feared it; but man [undertook to] bear it. Indeed, he was unjust and ignorant. ([33] Al-Ahzab : 72)

1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi

बेशक हमने (रोज़े अज़ल) अपनी अमानत (इताअत इबादत) को सारे आसमान और ज़मीन पहाड़ों के सामने पेश किया तो उन्होंने उसके (बार) उठाने से इन्कार किया और उससे डर गए और आदमी ने उसे (बे ताम्मुल) उठा लिया बेशक इन्सान (अपने हक़ में) बड़ा ज़ालिम (और) नादान है