يٰٓاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْٓا اِذَا نَكَحْتُمُ الْمُؤْمِنٰتِ ثُمَّ طَلَّقْتُمُوْهُنَّ مِنْ قَبْلِ اَنْ تَمَسُّوْهُنَّ فَمَا لَكُمْ عَلَيْهِنَّ مِنْ عِدَّةٍ تَعْتَدُّوْنَهَاۚ فَمَتِّعُوْهُنَّ وَسَرِّحُوْهُنَّ سَرَاحًا جَمِيْلًا ( الأحزاب: ٤٩ )
Ya ayyuha allatheena amanoo itha nakahtumu almuminati thumma tallaqtumoohunna min qabli an tamassoohunna fama lakum 'alayhinna min 'iddatin ta'taddoonaha famatti'oohunna wasarrihoohunna sarahan jameelan (al-ʾAḥzāb 33:49)
Muhammad Faruq Khan Sultanpuri & Muhammad Ahmed:
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम ईमान लानेवाली स्त्रियों से विवाह करो और फिर उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो तो तुम्हारे लिए उनपर कोई इद्दत नहीं, जिसकी तुम गिनती करो। अतः उन्हें कुछ सामान दे दो और भली रीति से विदा कर दो
English Sahih:
O you who have believed, when you marry believing women and then divorce them before you have touched them [i.e., consummated the marriage], then there is not for you any waiting period to count concerning them. So provide for them and give them a gracious release. ([33] Al-Ahzab : 49)
1 Suhel Farooq Khan/Saifur Rahman Nadwi
ऐ ईमानवालों जब तुम मोमिना औरतों से (बग़ैर मेहर मुक़र्रर किये) निकाह करो उसके बाद उन्हें अपने हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो तो फिर तुमको उनपर कोई हक़ नहीं कि (उनसे) इद्दा पूरा कराओ उनको तो कुछ (कपड़े रूपये वग़ैरह) देकर उनवाने शाइस्ता से रूख़सत कर दो